अजमेर विस्फोट से जुड़े मामले में अदालती सुनवाई के दौरान स्वामी असीमानंद ने जिस तरह से अपने बयान को दिया उससे लगता है कि देश में कट्टरपंथियों ने आपस में हाथ मिला लिए हैं और आम जनता के बीच विद्वेष फ़ैलाने के लिए वे किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं. यह सही है कि हर जगह पर हर तरह के लोग होते हैं और भारत भी उनसे अछूता नहीं रह सकता है पर देश के आम जन मानस को हिला देने वाली घटनाओं को जिस तरह से अंजाम देने में देश के बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों के कट्टरपंथी समूह इकठ्ठा होने लगे हैं वह अपने आप में बहुत ही चिंता का विषय है. अभी तक देश में सभी आतंकी हमलों के लिए पाक समर्थित आतंकी समूहों को ही दोषी मान लिया जाता था पर जिस तरह से इसमें स्थानीय लोगों की संलिप्तता भी अब दिखाई देने लगी है उससे लगता है कि देश में ख़ुफ़िया तंत्र पूरी तरह से विफल हो चुका है.
अभी तक किसी भी मुस्लिम के गिरफ्तार होने पर कुछ मुस्लिम संगठन उत्पीड़न का रोना रोते थे ओर इस बार हिन्दुओं के गिरफ्तार होने पर हिन्दू संगठन भी रो रहे हैं ? यह तो पहले से ही लिखी हुई एक घातक पटकथा सी लगती है जिसमें दोनों तरफ के हिंसक और क्रूर लोग आम लोगों की लाशों पर अपनी राजनीति चमकाने का प्रयास कर रहे हैं ? शुरू में महाराष्ट्र एटीएस द्वारा जब इस तरह की आशंका ज़ाहिर की गयी थी तब भाजपा और उससे जुड़े संगठनों ने इसे संतुष्टीकरण की नीति का एक हिस्सा कहकर सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी पर अब जब इस तरह के बयान सामने आ रहे हैं तो भाजपा की बोलती बंद है पर संघ ने बोलकर अपने चेहरे को बचाने की कोशिश की है कि वह किसी भी तरह के आतंक के खिलाफ है और संघ किसी भी तरह के आतंक की निंदा करता है. अच्छा ही है कि देश में बहुत सारे अच्छे कामों में लगे हुए संघ ने इस तरह के विवादों में पड़ने के स्थान पर अपनी नीति को साफ़ कर दिया है.
देश के लिए जो बात सबसे घातक हो सकती थी कि इस तरह की आतंकी विचारधारा वाले लोग मिलकर किसी भी हद तक जा सकते थे ? आम जनता जो धर्म को मानने के साथ उसकी आस्था पर लगी किसी भी चोट को बर्दाश्त नहीं कर पाती है उसके लिए यह खुलासा बहुत मायने रख सकता है अब हम सभी को इन धर्म के नाम पर किसी भी फालतू बात करने वाले पर ध्यान नहीं देना चाहिए. भारत में सभी को अपने धर्म पर चलने की पूरी छूट दी गयी है पर उसका इस तरह से दुरूपयोग होने लगे तो वह स्थिति बहुत ख़तरनाक भी हो सकती है. अब समय आ चुका है कि धर्म के ठेकेदारों से बच कर रहा जाये और किसी भी स्थिति में देश में सद्भाव बनाये रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए. यह देश हमारा है और धर्म पर चलने वाले को अपने धर्म पर अधिक विश्वास होना चाहिए न कि किसी धर्म गुरु पर ? अगर धार्मिक आज़ादी को हम इस तरह से लेने लगेंगें तो हो सकता है कि धर्म के नाम पर भविष्य में इतनी छूट जो संविधान द्वारा हमें दी गयी है उस पर पुनर्विचार की आवश्यकता भी पड़ जाये ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है..
जवाब देंहटाएंkya bat hai
bahut khub
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kabhi yaha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
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