मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 26 मार्च 2011

ग्रामीण विद्युतीकरण

                         देश में हर बात में राजनीति इतनी अधिक घुस चुकी है कि कई बार वह विकास पर भी छा जाती है. इसका ताज़ा उदाहरण केंद्र सरकार की ५ वर्ष पहले शुरू की गयी राजीव गाँधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना से देखा जा सकता है. जिस तरह से राज्य हमेशा की तरह अपनी कमियों का ठीकरा केंद्र पर फोड़ने के लिए तैयार रहा करते हैं उसको देखते हुए केंद्र सरकार ने इस महत्वाकांक्षी योजना को लाने का फैसला किया था पर कहीं से भी इस योजना को पूरी तरह से अमल में लाने में राज्यों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. यहाँ तक हरियाणा जैसा राज्य जहाँ पर शत प्रतिशत गाँवों तक बिजली पहुंची हुई है उसने भी इसकी और घरों तक उपलब्धता में केवल ३५ % तक ही बढ़ाने में सफलता प्राप्त की. हर मामले को दिल्ली के सर मढ़ने वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने तो इसकी चौकसी करने के लिए अभी तक मुख्य सचिव की अध्यक्षता में समिति तक बनाने में दिलचस्पी भी नहीं ली जबकि दलितों के उत्थान में यह योजना बहुत काम आ सकती थी पर कहीं न कहीं से इसे भी राजनीति खा गयी क्योंकि इसमें शायद कहीं पर राजीव गाँधी का नाम था ? वैसे भी अगर यह योजना पूरे प्रदेश में लागू भी हो जाती तो गाँवों तक तार खींचने के बाद देने के लिए उत्तर प्रदेश के पास बिजली ही नहीं है जो इन घरों को रोशन कर सकती ? वैसे भी इस तरह की किसी भी योजना पर अमल करने के लिए जिस इच्छा शक्ति की आवश्यकता होनी चाहिए वह अभी तक राज्य सरकारों के पास नहीं आ पाई है. अच्छा हो कि इस तरह की किसी भी योजना पर अमल करने के लिए किसी भी राजनीति को पीछे छोड़ दिया जाये.
     देश में आज भी जो कुछ किया जाना चाहिए वह कभी नहीं होता है फिर भी जब कभी कोई अवसर सामने आता है तो हम इस तरह से व्यवहार करते हैं जैसे कोई विदेशी या दुश्मन हमारी मदद करने के लिए आगे आ गया है. किसी भी राज्य में रहें वाले सभी लोग भारतीय हैं और उन्हें कहीं से भी इस तरह से किसी भी योजना से वंचित नहीं किया जाना चाहिए ? क्या आज हमारे घटिया नेताओं के पास इतना समय है कि वे किसी भी ऐसी योजना पर निष्ठापूर्वक विचार कर सकें ? इनके पास समय सिर्फ दिखावे के लिए ही बचा हुआ है और कहीं से भी ये अपने लोगों के उत्थान के लिए कुछ अच्छा करने की सोचना भी नहीं चाहते हैं. आज भी समय है कि पूरे देश में विकास की एक सामान लहर चले जिससे पूरे देश का समग्र विकास हो सके पर पता नहीं कब इनकी सोच में यह बात आ पायेगी ? पर इनकी छिछली सोच के चलते तब तक देश को जितना आगे जाना चाहिए वह नहीं जा पायेगा और हमें विकास की पटरी पर आराम से चलने की जगह पर लम्बी लम्बी छलांगें लगनी ही पड़ेंगीं. हो सकता है कि कभी पूरा देश बड़े शहरों के साथ अर्थ ऑवर मनाने के लिए पूरी तरह से सहयोग कर सके ?     
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