मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 27 मार्च 2011

क्रिकेट और कूटनीति

            भारत-पाक की मोहाली में भिडंत ने एक बार फिर से क्रिकेट के जूनून में रंगें दोनों देशों के बीच ठन्डे पड़े कूटनीतिक संबंधों को गर्माने का अवसर दे दिया है. इस मामले में मनमोहन सिंह ने पहल करते हुए पाक के शीर्ष नेताओं ने आगे आकर यह भिडंत देखने के लिए आमंत्रित कर दिया. मनमोहन के मन में इन मुकाबलों की चिंता भी थी तभी उन्होंने इस न्योते को देते समय यह भी कहा की इस में जीत खेल की ही होगी. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने अवसर का लाभ उठाते हुए मोहाली आने का फैसला भी कर लिया है. अभी तक जिस तरह से भारत पाक के बीच के सम्बन्ध विभिन्न कारणों से समय-समय पर ख़राब होते रहते हैं उनको देखते हुए कोई भी खेल केवल खेल नहीं रह जाता है. शीर्ष स्तर पर इसे खेल भावना कहा जा सकता है पर ज़मीनी स्तर पर कुछ तत्व जिस तरह से खुलेआम पाक का समर्थन करने लगते हैं उससे पूरे देश के मुसलमानों पर संदेह करने के लिए कुछ लोगों को बहाना मिल जाता है. भारत पाक के सम्बन्ध उस स्तर पर हैं जहाँ पर खेल भावना का कोई मतलब ही नहीं है.
      कोई इसे कुछ भी कहकर अपने मन को तसल्ली देता रहे कि यह खेल भावना के अनुरूप होगा पर कहीं से भी यह लगता नहीं है. मैदान पर खिलाड़ी इसे भले ही खेल भावना से ले लें पर दर्शकों में जब खेल का स्थान राष्ट्रवाद और धर्म ले लेता है तो खेल के मायने ही कुछ नहीं रह जाते हैं. भारत में इस तरह की किसी भी हार को आसानी से नहीं लिया जा सकता है पर पाक में तो हालत बहुत ही ख़राब हैं और इस बात का एहसास पाकिस्तानी कप्तान आफरीदी को भी था तभी उन्होंने खेल शुरू होने से पहले ही यह कहा दिया था कि वे सेमी-फाईनल  में भारत से नहीं भिड़ना चाहेंगें. किसी और देश से हारने के बाद पाक में उतनी तीख़ी प्रतिक्रिया नहीं होती है जितनी तीख़ी भारत से हारने पर होती है. होना तो यह चाहिए कि इस स्थान तक पहुँचने और अपने खेल में सुधार के लिए इन देशों के खिलाड़ियों की तारीफ होनी चाहिए पर इसके स्थान पर इनके हारने पर बहुत ही अशोभनीय प्रतिक्रिया होती है. पाक में क्रिकेट लगभग ख़त्म ही है पर इस बार उसके प्रदर्शन से वहां पर कुछ ठीक हो सकता है.
       वैसे इस तरह के किसी भी खेल से राजनेताओं को बहुत दूर ही रहना चाहिए क्योंकि इतनी बड़ी भीड़ और आतंकी ख़तरे को देखते हुए इन दोनों संवेदनशील पड़ोसियों के बहुत सारे अति महत्वपूर्ण लोगों का जमावड़ा भी आतंकियों को कुछ बड़ा करने के लिए उकसा सकता है. यह ठीक है कि हम अपनी रक्षा करने में सक्षम हैं पर जिस तरह से इस मैच में हर तरह की भावनाएं जोर मारेंगी उसे देखते हुए सुरक्षा एजेंसियों केलिए यह पूरा मसला बहुत संवेदन शील और चुनौती भरा होने जा रहा है. विशिष्ट लोगों की सुरक्षा करना एक बात है और अति महत्वपूर्ण लोगों की सुरक्षा बिलकुल दूसरी बात. हो चाहे जो भी इन बड़े नेताओं के आने का सबसे बड़ा खामियाज़ा क्रिकेट के दीवानों को ही भुगतना पड़ेगा क्योंकि कहीं से भी कोई भी सख्ती आख़िर इन पर ही भारी पड़ने वाली है. फिर भी केवल यही कहा जा सकता है कि वास्तव में यह केवल खेल ही रहे युद्ध जैसा मैदान न लगे पर भारत-पाक के बीच क्रिकेट का मुकाबला हो और उसमें रोमांच ही न हो क्या क्रिकेट के दीवानों के लिए यह सभव है ?             
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