प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल लांसेट ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में बताया है कि विश्व में हर रोज़ ७३०० बच्चे मृत पैदा होते हैं और इसमें शामिल १० शीर्ष देशों में भारत का भी नाम शामिल है. पाकिस्तान आदि देशों में यह दर ४६ है जबकि भारत में अब घटकर १५ के आस पास आ चुकी है. इस रिपोर्ट में खास बात यह भी है कि विश्व की ६६ प्रतिशत शिशु मृत्यु केवल १० देशों में ही है जिसमें दक्षिण एशिया और अफ्रीका के देश शामिल हैं. भारत में संस्थागत प्रसव के लायक आज भी पूरी व्यवस्था नहीं होने के कारण इस दर को और कम कर पाने में अभी सफलता नहीं मिल पा रही है. हालाँकि पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत इस दर में कमी लाने में सफलता मिली है फिर भी आभी इस दर को बहुत कम नहीं किया जा सका है. देश के दूर दराज़ के क्षेत्रों में कहीं से भी आज पूरी तरह से यह नहीं कहा जा सकता है कि वहां पर पूरी तरह से चिकित्सा व्यवस्था हो गयी है.
इस पूरे मसले को देश में व्याप्त भ्रष्टाचार से जोड़कर देखने से सही बात सामने आ जाती है. केंद्र सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत आयुष विभाग के चिकित्सकों की तैनाती का आदेश प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर दिया और उसके लिए आवश्यक धन भी उपलब्ध कराया उस अनुपात में ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाओं में सुधार नहीं हुआ क्योंकि १२ महीनों के लिए संविदा पर रखे जाने वाले चिकित्सकों द्वारा घूस दिए जाने पर ही चयन होने लगा और जब किसी ने अधिकारियों को पैसे दे रखे हैं तो वह कहीं भी दूर दराज़ के क्षेत्र में क्यों जाना चाहेगा ? पता नहीं जनता के हितों की दुहाई देने वाली सरकारें इस तथ्य को कैसे नहीं जान पाती हैं या फिर वे पैसे की इस बन्दर बाँट में शामिल होकर आँखें मूँद लेती हैं ? उत्तर प्रदेश में लखनऊ में ६ महीनों के भीतर मुख्य चिकित्साधिकारी परिवार कल्याण के पद पर बैठे दो लोगों की हत्या के बाद भी सरकार को अभी तक यह नहीं दिखाई दे रहा है कि भ्रष्टाचार कहाँ तक घुसा हुआ है ? ऐसा नहीं है कि यह केवल उत्तर प्रदेश में ही हो रहा है बल्कि यह किसी न किसी रूप में पूरे देश में चल रहा है.
जब तक सरकार इस मामले में दृढ इच्छा शक्ति का प्रदर्शन नहीं करेगी तब तक कुछ भी सुधरने वाला नहीं है क्योंकि जहाँ से नीतियों का निर्धारण किया जा रहा है वहीं से कड़ी कार्यवाही भी संभव है. आज देश के तहसील स्तर के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों तक में चिकित्सक नहीं रहना चाहते सभी को बड़े शहरों में नौकरियां चाहिए जिससे देश में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से पटरी से उतरी हुई दिखाई देती हैं. अब भी समय है कि देश में शिशु मृत्यु दर में और कमी लाने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने चाहिए. देश में इतनी प्रगति के बाद भी अभी तक शिशु मृत्यु दर में आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिल पाई है. अब इस काम को पूरी तरह से अभियान के तौर पर लेने की आवश्यकता है और साथ ही देश के दूर दराज़ के क्षेत्रों में काम करने वाले चिकित्सकों की उपस्थिति को नेशनल ब्राड बंद आने के बाद ऑनलाइन कर दिया जाना चाहिए साथ ही उनको इन क्षेत्रों में काम करने के लिए कुछ अधिक धनराशी का भुगतान भी किया जाना चाहिए तभी इस पूरे मामले को सही दिशा में आगे बढाया जा सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इस पूरे मसले को देश में व्याप्त भ्रष्टाचार से जोड़कर देखने से सही बात सामने आ जाती है. केंद्र सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत आयुष विभाग के चिकित्सकों की तैनाती का आदेश प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर दिया और उसके लिए आवश्यक धन भी उपलब्ध कराया उस अनुपात में ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाओं में सुधार नहीं हुआ क्योंकि १२ महीनों के लिए संविदा पर रखे जाने वाले चिकित्सकों द्वारा घूस दिए जाने पर ही चयन होने लगा और जब किसी ने अधिकारियों को पैसे दे रखे हैं तो वह कहीं भी दूर दराज़ के क्षेत्र में क्यों जाना चाहेगा ? पता नहीं जनता के हितों की दुहाई देने वाली सरकारें इस तथ्य को कैसे नहीं जान पाती हैं या फिर वे पैसे की इस बन्दर बाँट में शामिल होकर आँखें मूँद लेती हैं ? उत्तर प्रदेश में लखनऊ में ६ महीनों के भीतर मुख्य चिकित्साधिकारी परिवार कल्याण के पद पर बैठे दो लोगों की हत्या के बाद भी सरकार को अभी तक यह नहीं दिखाई दे रहा है कि भ्रष्टाचार कहाँ तक घुसा हुआ है ? ऐसा नहीं है कि यह केवल उत्तर प्रदेश में ही हो रहा है बल्कि यह किसी न किसी रूप में पूरे देश में चल रहा है.
जब तक सरकार इस मामले में दृढ इच्छा शक्ति का प्रदर्शन नहीं करेगी तब तक कुछ भी सुधरने वाला नहीं है क्योंकि जहाँ से नीतियों का निर्धारण किया जा रहा है वहीं से कड़ी कार्यवाही भी संभव है. आज देश के तहसील स्तर के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों तक में चिकित्सक नहीं रहना चाहते सभी को बड़े शहरों में नौकरियां चाहिए जिससे देश में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से पटरी से उतरी हुई दिखाई देती हैं. अब भी समय है कि देश में शिशु मृत्यु दर में और कमी लाने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने चाहिए. देश में इतनी प्रगति के बाद भी अभी तक शिशु मृत्यु दर में आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिल पाई है. अब इस काम को पूरी तरह से अभियान के तौर पर लेने की आवश्यकता है और साथ ही देश के दूर दराज़ के क्षेत्रों में काम करने वाले चिकित्सकों की उपस्थिति को नेशनल ब्राड बंद आने के बाद ऑनलाइन कर दिया जाना चाहिए साथ ही उनको इन क्षेत्रों में काम करने के लिए कुछ अधिक धनराशी का भुगतान भी किया जाना चाहिए तभी इस पूरे मामले को सही दिशा में आगे बढाया जा सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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