लखनऊ विश्विद्यालय प्रशासन ने जिस तरह से १ मई को विश्वविद्यालय के शिक्षकों द्वारा अन्ना हजारे के अभिनन्दन की पूर्व में दी गयी अनुमति वापस ली है उससे यही लगता है कि प्रदेश सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अन्ना का सामना नहीं करना चाहती है. अभी तक जिस तरह से अन्ना की सभा के लिए दी गयी अनुमति वापस लेकर उस पर रोक लगायी गयी है उसे किसी भी तरह से सही नहीं कहा जा सकता है. इस अनुमति को वापस लेने के लिए जिस बचकानी दलील को दिया गया है उससे कोई भी सहमत नहीं हो सकता है और इसीलिए शिक्षकों के संघ ने इस पूरे प्रकरण की राज्यपाल से शिकायत करने की बात भी की है. लगता है कि उत्तर प्रदेश सरकार को बिना बात ही कुछ न कुछ करने की आदत हो चुकी है तभी वह किसी भी मसले में अपनी राजनीति लेकर घुस जाती है. समिति में दलित की मांग करके वह बाबा साहब का अपमान भी करने से नहीं चूकती है पर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उसे डर लगने लगता है.
इससे घटिया दलील और कोई नहीं हो सकती है कि अन्ना की सभा में भारी भीड़ होगी जिससे व्यवस्था सँभालने में दिक्कत होगी अरे साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहते कि अन्ना पता नहीं लखनऊ में आकर किस आन्दोलन की बात कर जाएँ और यहाँ की सरकार चुनावी वर्ष में ऐसा कुछ भी नहीं झेल सकती है जो उसके ख़िलाफ़ जाने लगे ? अन्ना ने जिस शांति पूर ढंग से अपनी बात को दिल्ली में रखा था तो क्या प्रदेश यात्रा में वे किसी अराजकता का समर्थन कर सकते हैं ? इस घटिया सोच के लिए प्रदेश सरकार की जितनी भी निंदा की जाये कम है क्योंकि पता नहीं ये नेता सत्ता के गुब्बारे पर बैठकर कौन सी दुनिया में उड़ना शुरू कर देते हैं और यह भूल जाते हैं कि यह उनकी खाला का घर नहीं है बल्कि पूरी तरह से लोकतान्त्रिक ढंग से चलने वाला एक गौरवशाली देश है जिसने प्राचीन काल से ही अपने लिए अच्छे रास्ते को चुना है. आज किसी के स्वार्थों के लिए इस देश की जनता जानते हुए कभी भी देश हित को पीछे नहीं छोड़ सकती है.
क्या अन्ना की सभा में देश हित की बातें सुनने और भ्रष्टाचार पर प्रहार करने वाले लोग इतनी संख्या में आ जाते कि हर समय कानून और व्यवस्था का ढिंढोरा पीटने वाली प्रदेश सरकार उनको संभाल नहीं पाती ? क्या कारण है कि अपने राजनैतिक लाभ के लिए होने वाली रैली में तो सरकार हर शहर और हर गली में पुलिस, एम्बुलेंस की व्यवस्था तो कर सकती है पर जब देश के हित के लिए अन्ना की सभा की बात होती है तो उसे कानून और व्यवस्था दिखाई देने लगती है ? इस तरह की हरकतों से माया के नेतृत्व में प्रदेश सरकार पहले भी अपनी राजनैतिक अपरिपक्वता दिखा चुकी है और उसे लगता है कि वह ऐसा करके कुछ हासिल कर रही है तो यह उसकी सोच को ही दर्शाता है. अच्छा तो यह होता कि इस सभा के लिए प्रदेश सरकार अपना सब कुछ झोंक के पूरी व्यवस्था करती पर जब गाँधी और जेपी ने भी आन्दोलन किया था तो उन्हें भी तत्कालीन सरकारों ने रोकने के लिए पूरी कोशिशें की थीं पर बहती हुआ बयार को न पहचानने वाले खुद अपने लिए मुसीबतें मोल ले लिया करते हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
Pata hai naa ki aisi ki taisi ho jayegi
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