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मंगलवार, 17 मई 2011

रेलवे और दलाल

      जिस तरह से गर्मियों में यात्रियों के अधिक आवागमन से रेलों में भीड़ बढ़ जाती है ठीक उसी तरह इस समय पैसे कमाने के चक्कर में रेल विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत के साथ काम करने वाले दलाल भी सक्रिय हो जाते हैं. अभी तक रेलवे के पास जो भी संसाधन हैं वह उनका उपयोग करती रहती है फिर भी कहीं न कहीं से इसके विशाल नेटवर्क को देखते हुए यह सब काफ़ी कम पड़ जाता है. आज के समय में भी जिस तरह से रेलवे में दलाल हावी हैं उसे देखते हुए ही विभाग ने एक विशेष अभियान के तहत १५ दिनों में ५० से अधिक लोगों को टिकट की कालाबाज़ारी और अनधिकृत रूप से प्रयोग करते हुए पकड़ा है. यह अच्छा ही है कि कम से कम रेलवे ने इस तरफ़ा सोचना तो शुरू कर ही दिया है जिससे इन दलालों के में कुछ भय तो होगा ही फिर भी इनके बीच की बड़ी मछलियों पर हाथ डालने की आवश्यकता है क्योंकि अभी तक जिनको पकड़ा गया है वे इस स्तर पर बड़ा खेल खेलने में सक्षम नहीं हैं. जब तक इस पूरे धंधे का भंडा नहीं फूटेगा तब तक यह सब चलता ही रहेगा.
       अभी तक रेलवे में जिस तरह से गर्मियों में सीटों की कमी हो जाती है उससे निपटने की कोई जुगत जब तक सामने नहीं आएगी तब तक कुछ भी सुधारा नहीं जा सकेगा. जब भी मांग और आपूर्ति में इतना बड़ा अंतर होगा तो वहां पर भ्रष्टाचार के पनपने की संभावनाएं भी अधिक हो जायेंगीं. रेल को सबसे पहले इस बात पर विचार करना चाहिए कि उसके पास बड़ी मात्र में कुर्सी यान हमेशा ही उपलब्ध रहें जिससे किसी भी मार्ग पर अधिक लोगों के मिलने पर हर ट्रेन में कुछ अतिरिक्त सामान्य और वातानुकूलित कुर्सी यान लगाकर यात्रियों को कुछ अधिक सुविधाएँ दी जा सकें क्योंकि जब किसी को गंतव्य तक पहुंचना होता है तो उसके लिए यह महत्वपूर्ण नहीं होता है कि वह कैसे जा रहा है ? अगर किसी को सोने के लिए सीट नहीं मिल रही है और उसे बैठने के लिए आरक्षित सीट मिल रही है तो भी उसकी यात्रा कुछ हद तक सुगम तो ही जाएगी. यह सही है कि यात्रियों के दबाव को देखते हुए रेलवे सभी को सोने के लिए सीटें नहीं दे सकती है तो प्रयोग के तौर पर इस योजना को चलाकर देखने में कोई बुराई भी नहीं है. इससे जो सबसे अच्छी बात होगी उससे लोगों को कुछ सुगमता और रेलवे को अतिरिक्त आमदनी भी हो जाएगी.
     रेल के विशाल नेटवर्क को देखते हुए उसे अपने उपलब्ध संसाधनों को ठीक से प्रयोग में लाने की जुगत अपनानी होगी. हर बड़े स्टेशन पर जहाँ से गाड़ियाँ बनकर चलती हैं रेलवे के पास उसकी उपलब्ध कुल क्षमता का १० % भाग ऐसा होना चाहिए जो आवश्यकता पड़ने पर किसी भी ट्रेन में लगाया जा सके और यात्रियों को पूरी सुविधा दी जा सके. ट्रेन में जगह न मिलने पर लोग बहुत बार मजबूरी में ही बसों में सफ़र करते हैं इस स्थिति को तभी सुधारा जा सकता है जब रेलवे के पास इस तरह की आपातकालीन व्यवस्था उपलब्ध हो ?  ऐसा नहीं  है कि यह कोई बहुत कठिन काम है आरक्षण के समय यात्रियों से पूछा जा सकता है कि क्या वे प्रतीक्षारत टिकट को जगह उपलब्ध होने पर कुर्सी यान में बदलवाना चाहेंगें ? थोड़ी सुगमता से यात्रा पूरी हो जाने पर हर यात्री इस सेवा का लाभ उठाने का प्रयास करेगा और प्रतीक्षारत टिकट को निरस्त करने के स्थान पर वह इस तरह से इसी टिकट में बैठकर यात्रा करना चाहेगा. वैसे अगर रेलवे चाहे तो यह काम बहुत कठिन नहीं है पर इस तरह से सोचकर इसे लागू करने की आवश्यकता है.  
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