मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 22 जून 2011

एक मंत्री का सवाल है बाबा ?

        देश में बहुत सारे विभाग होने के बाद भी आज सहयोगी दलों की कीमत को रेल मंत्रालय से ही नापा जाता है तभी ममता बंगाल पर कब्ज़ा करने के बाद आज भी रेल मंत्रालय छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. ऐसा नहीं है कि ममता यह मंत्रालय अपने किसी मंत्री को देना नहीं चाहती हैं पर साथ ही वे अपने बराबर कद में किसी को खड़ा भी नहीं देखना चाहती हैं जिससे यह मामला अभी १ महीने बाद भी लटका हुआ है. इस मंत्रालय के काम काज को देखते हुए अभी तक ऐसा ही होता रहा है कि इसमें एक कैबिनेट मंत्री के साथ ३ तक राज्य मंत्रियों को रखा जाता है जिससे पूरा काम सुचारू ढंग से चल सके वैसे अगर रेल के आकार को देखते हुए राज्य मंत्रियों के काम काज में सही बंटवारा भी किया जाए तो यही मंत्रालय बहुत अच्छे से चल सकता है पर ममता की ज़िद है कि रेल तृणमूल के पास ही रहेगा और अब यह एक स्वतंत्र प्रभार के मंत्री द्वारा चलाया जायेगा. साथ ही वे अपनी ही पार्टी में किसी भी स्तर पर दूसरा सत्ता का केंद्र नहीं बनने देना चाहती हैं जिससे यह पहेली और भी जटिल होती जा रही है. 
   अभी तक ममता की तृणमूल के हिस्से में एक कैबिनेट सीट है जो ममता के बंगाल जाने के बाद खली हो गयी है और वे किसी को भी यह दर्ज़ा देकर आगे नहीं लाना चाहती हैं तो ऐसे में वे यह मंत्रालय स्वतंत्र प्रभार के साथ अपने किसी राज्य मंत्री को दिलवाना चाहती हैं. हालांकि कांग्रेस ने साफ़ किया है कि ममता अपने कोटे से एक नाम दे दें जिससे उसे यह मंत्रालय कैबिनेट मंत्री के रूप में सौंपा जा सके पर ममता को यह बात नहीं सुहा रही है. साथ ही कांग्रेस ने ममता की मंशा को भांपते हुए यह भी कह दिया है कि वे यह मंत्रालय उसे दे दे और अपने कोटे से एक राज्य मंत्री यहाँ पर नियुक्त कर दें जिससे उनकी बंगाल में चल रही रेल परियोजनाओं को अच्छी तरह से चलाया जा सके. पर ममता के रुख को देखते हुए यह प्रस्ताव भी ठन्डे बस्ते में चला गया है. अच्छा हो कि इस मसले पर दोनों दल मिलकर एक कार्य योजना बना लें और उसकी समीक्षा करने के बाद ही यह मंत्रालय कैसे चलाना है इस पर विचार किया जाए. स्वतंत्र प्रभार के मंत्री से ६ महीने काम करवा कर देखा जाये और उनका काम संतोषजनक होने पर उन्हें ऐसे ही काम करने दिया जाये.
         यह सही है कि जब कांग्रेस ने ममता को रेल मंत्रालय दे दिया है तो उन्हें इस पर जल्दी ही निर्णय करना चाहिए और अगर कांग्रेस को लगता है कि ममता के राज्य मंत्री सही काम नहीं कर पा रहे हैं तो वह उनके काम की समीक्षा करके ममता के सामने रख सकती है साथ ही ममता को भी यह समझना ही होगा कि बड़े स्तर पर काम करने के लिए बड़ी टीम की ज़रुरत होती है और इससे बचा नहीं जा सकता वरना जनता से किये गए वायदों को पूरा करने में बहुत दिक्कतें आने लगती हैं. जैसे जैसे ममता का कार्य बढ़ेगा वे रेल पर ध्यान नहीं दे पाएंगीं जिससे रेल को पटरी से उतरने में देर नहीं लगेगी. रेल अपने आप में ही बहुत सुधार चाहती है और ऐसे में इसे केवल इस तरह से लटकाए रहने से वह कई साल और पीछे छूट जाएगी. अब भी समय है कि ममता बड़े स्तर पर काम करने के लिए अपनी टीम को बढ़ाने की दिशा में काम करना शुरू कर दें जिससे आने वाले समय में और अधिक ज़िम्मेदारी मिलने पर वे और उनकी पार्टी इस काम के लिए पूरी तरह से तैयार हो सके.  
 
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