मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 15 सितंबर 2011

मेरा हिंदी दिवस

           शुरू से ही मैं व्यक्तिगत रूप से हिंदी में काम करने का आदी रहा हूँ अगर कोई भी काम हिंदी में लिखकर किया और समझा जा सकता है तो मैं उसे हिंदी में ही करने में विश्वास करता हूँ यहाँ तक की गूगल की कुछ सेवाओं के माध्यम से मैं हमेशा से ही विभिन्न सामाजिक वेबसाइट्स पर शुरू से ही हिंदी में काम किया करता हूँ पर इस बार का हिंदी दिवस मेरे लिए बहुत अजीब सा रहा क्योंकि मैंने जल्दी में ही अपने एक पुराने मोबाइल नंबर को पोर्ट करवाकर यूनिनोर में बदलवाया है जिसके बाद से मुझे इस सिम से इन्टरनेट चलाने में समस्या आ रही थी जिस सम्बन्ध में मैंने इस कम्पनी को मेल किया जो की मेरी आदत के हिसाब से यूनिकोड हिंदी में ही था पर कम्पनी की तरफ़ से मुझे मेल मिला जिसमें कहा गया था की मैं अपनी समस्या अंग्रेजी में लिखकर भेजूं ? अब शायद इस तरह का हिंदी दिवस न तो मैंने कभी मनाया था और न ही कभी मनाना चाहूँगा की इस दिन मुझे अंग्रेजी में काम करने की सलाह दी जाये ?
     मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं है की कोई कम्पनी किसी विशेष भाषा में ही पत्राचार करती है या नहीं पर जिस तरह से हिंदी भाषी भारतीय लोगों के लिए सेवाएं देने में तो ये कम्पनियां आगे रहती हैं पर जब बात संपर्क स्थापित करने की होती है तो इन्हें भाषा की समस्या आने लगती है मुझे इसके पीछे का कोई तुक समझ में नहीं आता है क्योंकि क्या हिंदी भाषी क्षेत्रों में आम उपभोक्ता इनको अंग्रेजी में मेल कर सकता है ? अगर ये कम्पनियां समझती हैं की वे अपने हिसाब से ही सब कुछ कर सकती हैं तो इस बारे में ट्राई को एक बार फिर से दिशा निर्देश जारी करने चाहिए की कोई भी कंपनी जिस क्षेत्र में कम कर रही है यह उसके लिए आवश्यक हो की वह उस क्षेत्रीय भाषा में किये गए किसी भी पत्राचार का उत्तर भी उपभोक्ता को उसी भाषा में दे. कहने को कम्पनियां यह कहने में नहीं चूकती हैं की उनके यहाँ काम करने का एक बिलकुल अलग ही तरीक़ा है जिससे उपभोक्ताओं को कोई समस्या नहीं होती है पर जो कम्पनी अपने उपभोक्ता की मातृभाषा को ही नहीं समझना चाहती है वह कैसे और किस स्तर पर सुविधाएँ देने का ढिंढोरा पीटती हैं ?
   ऐसा केवल भारत में ही हो सकता है की किसी व्यक्ति से यह कहा जाये की आपकी भाषा हमें समझ में नहीं आई आप इसे किसी विशेष भाषा में लिखकर भेजें ? क्यों आख़िर क्यों ? आज तकनीकी के क्षेत्र में इतनी प्रगति हो चुकी है की किसी भी भाषा के किसी भी पत्र का अनुवाद मनचाही भाषा में भी किया जा सकता है वैसे भी यूनिकोड में लिखे गए किसी भी पत्र को उसी भाषा में पढ़ना अधिक आसन होता है पर जब कोई ऐसे पत्र को पढ़ना चाहे तभी तो उसे पढ़वाया जा सकता है ? केवल कम्पनी मुख्यालय में बैठकर बातें करने से ज़मीनी हक़ीक़त में बदलाव नहीं आता है उसके लिए कुछ ठोस काम भी करना होता है. मुझे किसी भी कम्पनी की भाषा नीति से कोई दिक्कत नहीं है पर दिक्कत है तो उनके इस तरह के व्यवहार से जिस कारण से वे यह दिखाने की कोशिश करते हैं जैसे उन्हें हिंदी या कोई अन्य भारतीय भाषा आती ही नहीं है ? अच्छा हो की इस तरह के पूर्वाग्रह छोड़े जाएँ और उपभोक्ता से जुड़े मसलों को उनकी भाषा में निपटने का ही प्रयास किया जाये मुझे भाषा को लेकर कोई पूर्वाग्रह नहीं पर पर मुझे अपनी मातृभाषा हिंदी में काम करके अच्छा लगता है तो क्या मेरे लिए यह आवश्यक है की मैं किसी और की बात मानूं ?       
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

4 टिप्‍पणियां:

  1. इनकी शिकायत गृह मन्त्रालय करें, फिर देखिये ये कैसे ठीक होते हैं.

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  2. कल 16/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. नयी पुरानी हलचल से यहाँ तक आया। इन निजी कम्पनियों के अधिकारों में प्रशासनिक हस्तक्षेप अनिवार्य है लेकिन करे कौन?

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  4. आज -कल परिस्थिति ही कुछ इस तरह की हो गई है ....

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