मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

आम बजट मार्च में

     वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने आख़िर यह स्पष्ट कर ही दिया कि इस बार चुनावों के मद्देनज़र केंद्र सरकार का आम बजट को फ़रवरी के आख़िरी दिन के स्थान पर मार्च में ही पेश किया जायेगा क्योंकि ४ मार्च तक तो चुनावी प्रक्रिया ही पूरी हो पायेगी और इस दौरान अगले वित्तीय वर्ष में जिस तरह से सरकार नए कार्यक्रमों की घोषणा करती है आचा संहिता लागू होने के कारण नहीं कर पायेगी तो किसी भी स्थिति में वह अपने लोक लुभावन कार्यक्रमों को आसानी में नहीं छोड़ना चाहेगी. वैसे इन चुनावों का पूरे देश पर व्यापक असर पड़ने वाला है क्योंकि उत्तर प्रदेश से जो दिशा निर्धारित होगी वह २०१४ में होने वाले चुनावों के पूर्वाभास की तरह होगी. इस बीच में सभी दलों को इस चुनाव के परिणामों को देख कर अपनी कमियों को दूर करने और नयी योजनायें बनाने का अवसर भी मिल जायेगा. देश के लिए आम बजट एक त्यौहार की तरह होता है क्योंकि बजट बनाने की एक लम्बी चौड़ी प्रक्रिया है जिसके तहत सरकार देश के किसानों, व्यापारियों, उद्योगपतियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अर्थ शास्त्रियों के साथ बैठक करके उनकी राय जानने की कोशिश करती है और साथ ही यह भी जाने का प्रयास करती है कि देश के लिए इस वर्ष किस तरह से नीतियाँ बनायीं जाये ?
    चुनाव होने के साथ ही जिस तरह से देश में आचार संहिता लग जाती है और आने वाले काफी समय तक कोई नयी घोषणा भी नहीं की जाती है उसको देखते हुए सरकार के लिए यह बड़ी चुनौती भी रहती है कि वह समय से बजट को पारित भी करवाए. इस बार भी शीतकालीन सत्र में जिस तरह संसद का काम काज चला है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में भी कुछ इसी तरह के विवाद सामने आने वाले हैं जिसके कारण सरकार के लिए बहुत बड़ी मुसीबत होने वाली है क्योंकि इस बजट सत्र में भी लोकपाल का मुद्दा छाया रहेगा जिससे सरकार के लिए बजट से जुड़े सामान्य काम काज को निपटने में परेशानी हो सकती है. जिस तरह से अभी तक विपक्षी दलों ने सरकार को घेरने की रणनीति बनाई है उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह मुद्दा आगे भी बड़ी परेशानी का कारण बनने वाला है. इस सबके बीच सरकार के लिए देर से शुरू हुए बजट सत्र में समय बद्ध तरीके से काम करवाने की चुनौती भी होगी क्योंकि इस बजट को ३१ मार्च से पहले पारित भी करवाना होगा जिससे नए वित्तीय वर्ष से इसे लागू करवाने में कोई परेशानी न सामने आये.
    बजट सत्र में सरकार की चुनौतियाँ उत्तर प्रदेश के चुनावों पर भी बहुत हद तक निर्भर करने वाली हैं क्योंकि तब तक यह स्पष्ट हो चुका होगा कि प्रदेश में क्या स्थिति बनी है हो सकता है कि सपा/ बसपा में से किसी को सत्ता तक पहुँचने के लिए कांग्रेस की ज़रुरत पड़ जाये और वह इस स्थिति में फँस जाएँ कि बिना कांग्रेस उनकी नैया ही पार न लग पाए तो वैसी स्थिति में सम्मानजनक सीटों के साथ कांग्रेस भी अपने लिए दिल्ली के रास्ते को आसान करना चाहेगी ? ऐसी स्थिति में जो दल आज खुले तौर पर लोकपाल बिल का इस स्वरुप में विरोध कर रहे हैं वे उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनवाने के लिए कांग्रेस के साथ किसी समझौते तक आ सकते हैं. हो सकता है कि वैसी स्थिति में इनमें से सत्ता के निकट पहुँचने वाला दल केंद्र सरकार में शामिल हो जाये और प्रदेश में कांग्रेस को सीटों के अनुसार भागीदार बना ले ? फिलहाल कुछ भी हो इस बार के इन चुनावों के बाद सरकार के लिए आने वाला समय भी आसान साबित नहीं होने वाला है लेकिन उत्तर प्रदेश से आने वाले कुछ बेहतर नतीजे कांग्रेस के लिए परेशानियाँ कम करने का काम तो कर ही सकते हैं.      
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