मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 2 जनवरी 2012

संवैधानिक संस्था और मंत्री

       उत्तर प्रदेश में पिछले ५ वर्षों में जिस तरह से लगातार संविधान की धज्जियाँ उड़ायी जाती रही हैं उसके ताज़ा क्रम में प्रदेश के ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय ने अपनी एक चुनावी जनसभा में लोकायुक्त के बारे में जिस तरह से अशोभनीय टिप्पणी की उससे यह बात पक्की हो जाती है कि बसपा की संविधान और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ आंबेडकर के लिए कितनी श्रद्धा है. जिस संविधान को बनाने के लिए गठित की गयी सभा के अध्यक्ष के रूप में डॉ आंबेडकर ने भारतीय गणतंत्र के लिए एक तरह से नई आचार संहिता बनाए की कोशिश की थी आज उन्हीं के तथाकथित अनुयायी यह भूल जाते हैं कि संविधान की मूल भावना का अपमान करना और बाबा साहब का अपमान करना एक ही बात है. जो पार्टी बाबा साहब की कसमें खाते हुए दिन रात नहीं थकती है उससे यह उम्मीद की जाती है कि वह अपने आचरण में भी बात को उतारेगी पर लगता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के बारे में कुछ भी बोलने वाली बसपा अध्यक्ष के पद चिन्हों पर चलने में उनके नेतागण कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं. शायद बसपा में इस बात के भी नंबर मिलते हों कि किसने किस हद तक संविधान की भावना को ठेस पहुंचाई है ?
     जिस तरह से उपाध्याय ने प्रदेश को लोकायुक्त को हटा देने के बारे में अपनी शक्ति का बखान किया और वह भी एक चुनावी सभा में तो इस बात से यही आशंका बलवती होती है कि प्रदेश सरकार में यह बात आम थी कि किसी भी संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति के बारे में कोई भी अनर्गल टिप्पणी की जा सकती है ? बिना ऊपर के आशीर्वाद के बसपा जैसी पार्टी में कोई भी नेता इस तरह की बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा सकता है और रामवीर तो माया के ख़ास लोगों में हैं. जिस तरह से विभिन्न कारणों से मायावती ने अपने मंत्रिमंडल के कुल १/३ मंत्रियों की छुट्टी कर दी वैसा स्वतंत्र भारत के इतिहास में दूसरा कोई उदाहरण नहीं मिलता है जहाँ पर विभिन्न आरोपों और कारणों से इतनी बड़ी संख्या में मंत्रियों को चुनावी माहौल में बर्खास्त किया गया हो ? सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि भ्रष्टाचार के आरोपी मंत्रियों से लिए गए विभागों को ऐसे मंत्रियों को सौंपा जा रहा है जो ख़ुद भी लोकायुक्त के जांच रडार पर हैं और उनके ख़िलाफ़ जांच चल रही है ? चुनाव के समय में किसी को भी कुछ भी कहने का अवसर नहीं मिल जाता है और बात जब तक राजनैतिक विरोध की हो तब तक तो सब कुछ चलता है पर एक मंत्री अगर यह कहने का दुस्साहस करने लगे कि अगर वह चाहता तो लोकायुक्त को एक पल में हटा सकता था तो यह चिंता की बात है.
   बात बात पर चुनाव आयोग जिस तरह से अपने आप ही बहुत सारी बातों को संज्ञान में ले लेता है तो क्या संवैधानिक पद पर बैठे लोकायुक्त की गरिमा के बारे में इस तरह से अनर्गल बातें करने वाले रामवीर के ख़िलाफ़ भी कोई रिपोर्ट दर्ज़ की जाएगी और क्या नेताओं को उनकी सीमा का भान कराया जायेगा जिसके बाहर जाने पर उन्हें दंडात्मक कार्यवाही झेलनी पड़ सकती है. दो दिन पहले राज्यसभा में बसपा के नेता सतीश चन्द्र मिश्र बड़ी बड़ी बातें करके अपने भाषण को वज़नी बनाने में लगे हुए थे कि केंद्र किस तरह से देश के संविधान कि मूल भावना से छेड़ छाड़ कर रहा है पर क्या उनकी पार्टी के वरिष्ठ मंत्रियों को इस बात का भी ज्ञान नहीं है कि किस व्यक्ति या पद के बारे में बोलते समय किस तरह की भाषा का प्रयोग करना चाहिए ? एक चुनावी माहौल में बसपा मुखिया और सपा के नेता के गुंडा गुंडी प्रकरण को पूरे देश ने दूरदर्शन पर सजीव देखा था अब जब पार्टी के शीर्ष नेता लोग ही इस तरह से व्यवहार करने लगते हैं तो अन्य नेताओं से किस मर्यादा की आशा की जा सकती है ? अभी तो चुनाव का आगाज़ हुआ है आने वाले समय में इस तरह के हमले बढ़ सकते हैं और जिस तरह से सरकार को अपने सूत्रों से भी पता चल चुका है कि अब उसकी वापसी नहीं होनी है तो शायद हताशा में अभी और भी इस तरह की बयानबाज़ी देखने को मिले.  
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