मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 1 जनवरी 2012

दिल्ली मेट्रो और श्रीधरन

      दिल्ली की शान बनी मेट्रो से शुरू से ही जुड़े हुए इसके चीफ़ ई श्रीधरन जब २०११ के साथ ही इस गौरवशाली संगठन से विदा लेंगें तो यह क्षण मेट्रो से जुड़े हुए हर व्यक्ति के लिए बहुत ही भावुक होगा क्योंकि जिस तरह से मेट्रो मैन के नाम से मशहूर शख्स ने एक सरकारी विभाग को कार्यकुशलता का दूसरा नाम दे दिया वैसा उदाहरण स्वतंत्र भारत के इतिहास में दूसरा और नहीं मिलता है. ७९ साल की अवस्था में भी वे जिस तरह से ख़ुद ही आगे बढ़कर नेतृत्व करने की भावना से भरे रहते थे वह युवाओं के लिए प्रेरणादायी है और जहाँ देश में सरकारी विभागों और संगठनों के नाम से मक्कारी जुड़ी हुई है उसमें मेट्रो अगर एक ठंडी हवा के झोंके जैसा लगता है तो इसका पूरा श्रेय इसी व्यक्ति को जाता है. ऐसा नहीं है कि मेट्रो में केवल श्रीधरन के कारण ही सब कुछ ठीक रहा करता था पर ऐसा भी है कि उनके कुशल और समयबद्ध तरीके से काम करने की मानसिकता ने पूरे मेट्रो संगठन को एक नयी राह दिखा दी है. आज की तारीख़ में भी मेट्रो नयी नयी चुनौतियों से लड़ने के लिए ख़ुद ही तैयार होती रहती है और अपने द्वारा स्थापित किये गए मानदंडों को और आगे बढ़ाने में सदैव ही लगी रहती है.
    नए चीफ़ मंगू सिंह भी इसी संगठन से काफी समय से जुड़े हुए हैं और एयरपोर्ट एक्सप्रेस के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है ऐसे में उनके लिए भी मेट्रो का काम काज नया नहीं है फिर भी मेट्रो मैन के द्वारा निर्धारित किये गए मानदंडों को पूरी तरह से बनाये रखने में उन्हें कुछ कठिनाई तो होने वाली ही है क्योंकि यह एक सरकारी संगठन है और जिस तरह से श्रीधरन को सरकार की तरफ़ से पूरी छूट मिली हुई थी अब मंगू सिंह को कितनी मिल पायेगी यह तो समय ही बताएगा क्योंकि सरकारें श्रीधरन के दबाव में तो रहा करती थीं और मंगू सिंह इस मसले को कैसे निपटेंगें यह देखें का विषय होगा. अच्छे और प्रभावी मेट्रो संगठन के लिए अब समय है कि इसे पूरी तरह से स्वायत्ता दी जाये और इसके निर्माण, परिचालन आदि से जुड़े मसलों को पूरी तरह से विशेषज्ञों के हाथों में ही रहने दिया जाये जिससे इसकी उन्नति लगातार होती चली जाये. आज अगर मेट्रो को अलग से माना और देखा जाता है तो उसके पीछे मुख्य कारण यही है कि इस संगठन के फैसले अभी तक सरकारी लालफीताशाही से बचे रहे हैं और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी इस संगठन को पूरी आज़ादी से काम करने की छूट दे रखी थी.
   मेट्रो संगठन में अब तक जो काम करने की परंपरा बन चुकी है उस पर अगर पूरा ध्यान दिया जाये और इसे सरकारी मशीनरी के स्थान पर ज़िम्मेदारी से काम करने वाला संगठन ही बने रहने दिया जाये तो दिल्ली और मेट्रो दोनों के लिए ही यह अच्छा होगा. अब सरकार की ज़िम्मेदारी इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि अब हो सकता है कि नए चीफ़ के आने के बाद से इसे कुछ दिन निर्णय लेने में कुछ परेशानियाँ भी हों पर यह किसी भी स्तर इसके विकास से जुड़े किसी भी काम में कोई रूकावट न होने पाए. इस आशंका के बीच यह उम्मीद भी बलवती होती है कि जिस तरह से २० साल पहले मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में टी एन शेषन ने जो काम शुरू किया था आज भी देश का चुनाव आयोग इसे बखूबी निभा रहा है और उनके बनाये रुतबे और परंपरा को किसी भी स्तर पर कम नहीं होने दिया जा रहा है. ठीक इसी तरह से हो सकता है कि मेट्रो संगठन अपनी शक्ति को पहचाने और पूरे देश के सामने कार्यकुशलता की एक नयी इबारत लिखे जिससे अन्य सरकारी संगठन भी इसी तरह से काम करना सीख सकें. श्रीधरन को सुखद भविष्य की शुभकामनाओं के साथ मंगू सिंह और मेट्रो संगठन को उज्जवल भविष्य की कामना यह देश तो कर ही रहा है अपर अब इस ज़िम्मेदारी को मजबूती से निभाने का समय मेट्रो पर है.  
 
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. ... बेहद प्रभावशाली

    नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.

    शुभकामनओं के साथ
    संजय भास्कर
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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