मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

वर्मा समिति

                                   जिस तरह से पूरे देश में दिल्ली की घटना के बाद उबाल आ रहा था उसे देखते हुए सरकार की तरफ़ से कुछ कारगर उपायों की घोषणा और उनके समयबद्ध तरीके से पूरा किये जाने की ज़रुरत थी. अब सरकार ने विचार विमर्श करके सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे एन वर्मा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति की घोषणा की है जिसके लिए ३० दिनों में अपने सुझावों को देने के लिए कहा गया है. इस समिति में हिमाचल उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश लीला सेठ तथा पूर्व सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रह्मनियम को इसका सदस्य बनाया गया है. इस समिति ने काम करना शुरू भी कर दिया है और जस्टिस वर्मा की तरफ़ से पूरे देश से इस मुद्दे पर राय मांगी गयी है. यह एक सही दिशा में उठाया गया कदम है क्योंकि केवल प्रदर्शन और विरोध की राजनीति से इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकल सकता है और उस स्थिति में जब किसी भी तरह के सरकारी प्रयासों पर अविश्वास जताया जा रहा हो तो इस तरह से सभी की राय मांगकर आगे बढ़ने की प्रक्रिया को सही कहा जा सकता है. अब यह समिति की ज़िम्मेदारी है कि वह समय सीमा का ध्यान रखते पूरी निष्ठा से इस महत्वपूर्ण काम को करे.
            सरकारी स्तर पर काम करने की एक अपनी ही गति होती है और किसी भी प्रयास से आज तक उसमें परिवर्तन नहीं लाया जा सका है ऐसे में यह समिति यदि सही समय से अपनी सिफारिशें सरकार तक पहुंचा पाने में सफल होती है तो आने वाले समय में इस तरह की समितियां बनाये जाने का उद्देश्य भी सफल हो जायेगा. अभी तक सरकारें जिस तरह से किसी मुद्दे को लटकाने के लिए ही समितियों और आयोगों का सहारा लिया करती हैं उस स्थिति में यह समिति समयबद्ध तरीक़े से अपने काम को निभाकर एक नयी परंपरा को शुरू कर सकती है. जितने बड़े पैमाने पर इस मुद्दे पर जन जागरण हुआ है उसको देखते हुए आने वाले सभी सुझावों पर सोच समझकर निर्णय करना इस समिति के लिए भी काफी कठिन होने वाला है क्योंकि आज के युग में जिस तरह से युवा नेट से जुड़े हुए हैं तो इस मसले पर उनकी मुखरता सामने आ सकती है. वैसे यदि बड़ी संख्या में देश के लोग इस तरह के किसी भी परिवर्तन में अपनी राय देने लगें तो काम करने वालों के लिए भी देश की नब्ज़ पकड़ना आसान होने वाला है और आने वाले समय में पूरे देश की समग्र भागीदारी के बारे में भी सोचा जा सकता है.
           सबसे महत्वपूर्ण बात यहाँ पर यह भी है कि इस समिति को काम करने के लिए जितना समय दिया गया है उसमें उसके लिए काम करना एक बड़ी चुनती है फिर भी बड़ी बड़ी चुनौतियों का सामना करने के आदी लोगों के लिए यह सब उतना मुश्किल भी नहीं होने वाला है. जब पूरे देश से सहयोग और सुझाव मिलने शुरू होंगें तो उन पर विचार करने के लिए जितने बड़े पैमाने पर स्टाफ़ की आवश्यकता होगी उसे पूरा करने के लिए सरकार को आयोग को पूरा सहयोग करना ही होगा क्योंकि अभी तक जिस तरह से आयोग और समितियां तो बना दी जाती हैं पर उनको मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध नहीं करायी जाती हैं जिससे उनके लिए काम कर पाना उतना आसान नहीं रह जाता है. देश को गंभीर मुद्दों पर एक साथ आगे बढ़कर काम करने की ज़रुरत है क्योंकि मतभेदों को उजागर करने के लिए बहुत सारी अन्य जगहें भी हैं फिर देश को प्रभावित करने वाली इस तरह की गतिविधियों पर सभी को आगे आकर अपने सुझावों को सामने रखने की आवश्यकता है. समिति के सुझाव चाहे जो हों पर सबसे पहले कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए सही दिशा में प्रयास करने की ज़रुरत है जिससे हम सभी इनसे आसानी से निपट सकें और अपराधी प्रवृत्ति पर भी अंकुश लगाने का काम किया जा सके.            
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