मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 30 जनवरी 2013

२०१४ चुनाव का परिदृश्य

                     देश में जिस तरह से आने वाले आम चुनावों के लिए अभी से विभिन्न पार्टियों द्वारा लामबंदी शुरू कर दी गयी है उससे यही लगता है कि देश के नेता और राजनैतिक तंत्र कुछ मुद्दों पर समय से पहले ही सक्रिय हो जाया करते हैं क्योंकि देश में अभी तक किसी भी पार्टी द्वारा समय से पहले इस तरह से प्रधानमंत्री पद के लिए संभावित नामों पर इतने बड़े पैमाने पर विचार विमर्श भी नहीं हुआ है ? कांग्रेस में जहाँ हमेशा से ही यह पद पार्टी में प्रभावशाली गाँधी परिवार के द्वारा ही तय करने की परंपरा रही है वहीं अभी तक भाजपा में अटल बिहारी के नाम पर पूरी सहमति रहा करती थी. पिछले चुनावों में जहाँ संप्रग ने अप्रत्याशित तरीके से फिर से जीत हासिल की थी वहीं राजग के पास उस मुद्दे पर बात करने के अवसर ही जाते रहे थे. पर गुजरात चुनावों में मोदी के सफल प्रदर्शन के बाद जहाँ भाजपा में एक वर्ग उन्हें २०१४ के लिए पीएम पद का उम्मेदवार घोषित कर चुनाव लड़ना चाहता है वहीं एक वर्ग इस मसले को चुनावों के बाद ही सुलझाने पर ज़ोर दे रहा है. भाजपा में सभी को पता है कि मोदी की संभावनाओं पर विचार करना दोधारी तलवार हो सकती है जिससे हो सकता है कि पार्टी का ग्राफ एकदम बढ़ जाए या फिर हो सकता है कि पार्टी अपने दम पर जितनी आगे बढ़ पाए उतने ही सहयोग अपनी राजनैतिक मजबूरियों के चलते उससे किनारा भी कर लें ? 
                                    भाजपा की राष्ट्रीय स्तर पर जो स्थिति आज बनी हुई है उसे देखकर कोई भी यह विश्वास के साथ नहीं कह सकता ही कि आने वाले चुनाव में उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा होने की संभावनाएं हैं क्योंकि जिन युवा वोटरों की बात आज पूरा समाज करता है वे किसी भी तरह की अनर्गल राजनीति को किसी भी परिस्थिति में पसंद नहीं करते हैं और यही बात आज की नकारात्मक राजनीति करने के कारण भाजपा और राजग के ख़िलाफ़ भी जा सकती है ? लोकपाल से लेकर अन्य ज्वलंत मुद्दों पर भाजपा ने जिस तरह से दोहरा रवैया अपनाया हुआ है उसका इन वोटरों द्वारा कितना सम्मान कर उन्हें वोट देने के लिए तैयार कर पायेगा यह अभी कोई नहीं जनता है. यह सही है कि आज के समय में मोदी ने बेहतर सरकार चलाकर पूरी तरह से अपनी दक्षता को सिद्ध कर दिया है पर भारतीय राजनीति में आज भी दिखावे के तौर पर कुछ दल और नेता जिस तरह से उनसे दूरी बनाकर रखना चाहते हैं उसका कोई महत्त्व अब नहीं रह गया है. मोदी की तरह ही नितीश कुमार भी अच्छी सरकार चलाने के लिए जनता द्वारा दोबारा सत्ता में हैं तो उनकी बात को राजग में अनसुना कर पाना किसी के लिए भी मुश्किल ही होगा.
                                    इस बार का चुनाव राहुल बनाम मोदी करवाने की भाजपा पूरी कोशिश कर रही है पर उससे पहले ही यह नितीश बनाम मोदी की लड़ाई बनकर राजग में ही सामने आने वाली है क्योंकि पुराने दलों के साथ संपर्क में आने को लालायित मुलायम इस तरह के नेताओं को अपने साथ लेकर तीसरे मोर्चे की संभावनाओं पर भी विचार करने से नहीं चूकने वाले हैं ? भाजपा के लिए मोदी के लिए उतनी बड़ी स्वीकार्यता बना पाना आज भी एक चुनौती ही है जबकि नितीश के नाम पर अन्य दलों में कोई सहमति नहीं बन पायेगी ऐसे में यशवंत सिंहा के बिहार समीकरणों को भी समझा जा सकता है क्योंकि नितीश ने जिस तरह से बिहार में अपना वर्चस्व बना लिया है उस परिस्थिति में उनके और भाजपा के लिए वहां करने लायक बहुत कुछ नहीं बचा है. मोदी को लेकर जिस तरह से विश्व भर के देश अपने पुराने स्टैंड को बदलकर उनके साथ राज्य में लगने वाली परियोजनाओं पर बात करना शुरू कर चुके हैं वह स्थिति कहीं न कहीं मोदी और भाजपा को लाभ ही पहुँचाने वाली सिद्ध होगी पर भारतीय राजनीति में जहाँ छुद्र स्वार्थ हमेशा ही आगे चलते रहते हैं उस स्थिति में मोदी के नाम पर राजग क्या कुछ पाकर क्या खो देगा अब यही देखने का विषय है.        
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