मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 29 जनवरी 2013

यूपी - संभावनाओं में रोड़े

                                        आगरा में आयोजित ग्लोबल पार्टनरशिप समिट २०१३ में बोलते हुए जिस तरह से अखिलेश यादव ने प्रदेश में बुनियादी सुविधाओं के साथ विकास के अन्य क्षेत्रों पर भी ध्यान देने की बात की है यदि उस पर वास्तव में अमल किया ज सका तो आने वाले समय में प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की तकदीर भी बदल सकती है. आज के समय में जब विभिन्न सरकारी योजनाओं में केन्द्रीय सहभागिता बढ़ती ही जा रही है तो उस परिदृश्य में माया सरकार से उलट यदि इस तरह की योजनाओं का पूरी क्षमता के साथ उपयोग कर क्रियान्वित किया जा सका तो यूपी सभी तरह के निवेशकों को अपनी तरफ़ आकर्षित कर सकता है. अभी तक सरकारें केवल इस तरह के आयोजनों को आगे करके केवल वायदा ही करती रहती हैं पर यदि इन पर चरण बद्ध तरीक़े से अमल भी शुरू किया जाये तो धरातल पर वास्तव में बहुत कुछ बदला भी जा सकता है. आज अखिलेश सरकार के पिछले कुछ महीनों के कार्यकाल पर यदि नज़र डाली जाए तो उसका काम केवल औसत ही कहा जायेगा जबकि युवा और ऊर्जा से भरे होने के कारण उनके पास कुछ भी करने के लिए पूरा मैदान खुला पड़ा था. आज के तेज़ी से आधुनिक होते युग में भी जिस तरह से अखिलेश सरकार भी सपा की पुरानी परिपाटी को ही आगे बढ़ाने में लगी हुई है उसका असर प्रदेश की कानून व्यवस्था पर पूरी तरह से दिख रहा है.
                     किसी भी तरह के निजी क्षेत्र के पूँजी निवेश को आकर्षित करने के लिए जिस तरह से सबसे पहले बेहतर कानून व्यवस्था की आवश्यकता की आवश्यकता होती है आज प्रदेश में वह कहीं भी दिखाई नहीं देती है और सरकार के काम काज से असंतुष्ट दिखाई दे रहे मुलायम सिंह भी अनमने ढंग से केवल झूठी आलोचना करके अखिलेश को ग़लत फ़हमी में ही जीने दे रहे हैं. ऐसी क्या मजबूरी है जिसके कारण मुलायम सरकार और मंत्रियों के साथ पार्टी के लोगों को भी चेतावनी तो देते हैं पर किसी के काम पर कोई असर दिखाई नहीं देता है ? प्रदेश की जनता को अच्छे ढंग से काम करने वाले नेता और सरकारें चाहिए पर यूपी का अभी भी यही दुर्भाग्य बना हुआ है कि यहाँ पर विकास से आगे जाति और धर्म की राजनीति आज भी प्रभावी है और जब तक जनता और नेताओं की सोच इससे आगे नहीं बढ़ेगी तब तक कोई भी दल यहाँ के लोगों के सपनों को पूरा नहीं कर पायेगा. अभी भी कुछ करने के स्थान पर केवल बयानबाज़ी को ही प्राथमिकता दी जा रही है जिससे जनता का विश्वास एक बार फर से सपा पर से उठने लगा है. आज भी प्रदेश में आधारभूत ढांचे की पूरी तरह से कमी दिखाई देती है पर सरकार केवल अपने वोटों को ही मज़बूत करने में लगी हुई है.
                     देश और प्रदेश के लिए सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह भी है कि युवाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले आज के युवा नेता भी अपनी पार्टियों की उस पुरानी घिसी पिटी छवि से खुद को बाहर निकल नहीं पा रहे हैं जो परंपरागत रूप से उनका वोट बैंक मजबूत करने का काम करती है ? ऐसे में प्रदेश की बागडोर मुलायम के हाथों में हो या अखिलेश के आम जनता को क्या अन्तर महसूस होगा जबकि करने पर आयें तो अखिलेश के पास इतना स्पष्ट बहुमत है कि वे बिना किसी दूसरी तरफ़ देखे ज़मीनी स्तर पर बहुत बड़ा नीतिगत बदलाव करने की संवैधानिक स्थिति में खुद हैं पर वे इस स्थिति का लाभ उठाने के स्थान पर सपा के दिग्गजों के सामने जिस तरह से नत मस्तक दिखाई देते हैं उससे यही लगता है कि मिशन २०१४ केवल मुलायम को गफ़लत में रखने के लिए ही चलाया जा रहा है. अब जब चुनाव में एक साल का समय ही रहा गया है तो सरकार विकास के ठोस आयामों की तरफ़ बढ़कर जाति और धर्म की राजनीति के कुचक्र को तोड़कर आगे बढ़ने के बारे में सोच सकती है क्योंकि विकास के साथ ये झूठी शान को प्रदर्शित करने वाली बातें नहीं चल सकती हैं. अब गेंद अखिलेश के पाले में है वे चाहें तो अपने को बचाते हुए नयी शुरुआत भी कर सकते हैं और चाहें तो इसी रफ़्तार से चलते हुए गोल खाकर हारने के लिए भी खुद को तैयार कर सकते हैं.    
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