मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 28 जनवरी 2013

पाक और कारगिल

                           पाक सेना के पूर्व ले० जनरल शाहिद अजीज़ ने जिस तरह से कारगिल मसले पर यह खुलासा किया है कि १९९९ के कारगिल युद्ध में पूरी तरह से पाक की नियमित सेना ही शामिल थी उससे भारत के उस दावे को ही बल मिला है जिसमें वह शुरू से ही यह कहता रहा है कि यह पूरी लड़ाई तथाकथित मुजाहिदीनों ने नहीं बल्कि पाक की सेना ने ही शुरू की थी. पाक ने शुरू से ही भारत के आरोप को नाकारा है और हमेशा से ही यह कहा है कि यह कश्मीर के लड़ाकों का आज़ादी के लिए किया जाने वाला संघर्ष था जबकि उसमें पाकिस्तान को कुछ भी हासिल नहीं हुआ था इसमें अनावश्यक रूप से सीमा के दोनों तरफ़ तनाव बढ़ा था और एक पूरे युद्ध जैसे हालात बनाकर एक युद्द लड़ा भी गया था. आज शाहिद अजीज़ को यह लग रहा है कि उस समय जिस तरह से पाक सैनिकों ने विपरीत परिस्थितियों में अपनी जान दी उसकी कोई ज़रुरत नहीं थी पर पाक में आज भी भारत को ख़त्म कर देने की मंशा पाले हुए पता नहीं कितने लोग ज़िन्दा है जिन्हें किसी भी तरह से भारत के खिलाफ हर समय साज़िशें रचने में ही सब कुछ नज़र आता है.
                         अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह से आज तक संयुक्त राष्ट्र और अन्य संगठन केवल चुनिन्दा देशों के हितों पर निर्भर रहने के कारण उनकें हितों वाले मुद्दों पर ही ध्यान दिया करते हैं उससे यही लगता है कि शाहिद अजीज़ के इस खुलासे के बाद भी पाक के ख़िलाफ़ कोई कुछ नहीं बोलेगा. पाक के नेताओं और सेना को केवल भारत के खिलाफ ज़हर उगल कर ही जनता से सहानुभूति हासिल होती है इसलिए ही वहां पर यह दोनों होड़ करने में लगे रहते हैं कि इनमें से किसने और कितने दिनों तक भारत को संकट में डाल कर परेशान किए रखा है ? पाक की समझ में अभी तक यह नहीं आ पाया है कि पड़ोसी देश होने के नाते भारत से सम्बन्ध अच्छे नहीं तो कम से कम सामान्य तो होने ही चाहिए जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार और अन्य मुद्दों पर सहमति को आगे बढ़ाया जा सके पर इस तरह के प्रयासों में केवल भारत ही कुछ करता हुआ दिखाई देता है तो फिर इन संबंधों को द्विपक्षीय कैसे कहा जा सकता है ? क्या पाक चाहे जो करता रहे और सम्बन्ध ठीक रखने की ज़िम्मेदारी केवल भारत की है है ? अब पाक को यह साफ़ शब्दों में बताने का समय आ चुका है कि भारत अब इन एक तरफ़ा संबंधों को और ढोना नहीं चाहता है.
                          पाक के अब तक के इतिहास को देखते हुए भारत के पूरे राजनैतिक तंत्र को एक साथ बैठकर एकमत से संसद में पाक से निपटने की कारगर नीति पर विचार करना ही होगा क्योंकि पाक जब आजादी के इतने वर्षों बाद भी अपनी उस नीच मानसिकता से बाहर नहीं आ पा रहा है तो उसके साथ सम्बन्ध रखने की क्या मजबूरी है ? पाक के साथ केवल उन्हीं संबंधों पर बात करनी चाहिए जिनसे उस पर दबाव बनता हो क्योंकि दुष्टों को सहयोग की भाषा समझ में नहीं आती है. भारत को अपने पाक के साथ जुड़े सभी संबंधों पर एक बार फिर से विचार करने की ज़रुरत अब आ चुकी है क्योंकि जब पाक की तरफ़ से केवल ग़ज़ल गाने वाले और साहित्यकार ही आकर सद्भावना की बातें करते नज़र आते हैं और वहां के शासक चाहे वे किसी भी दल के हो सेना के दबाव में भारत विरोधी सुर हमेशा ही अलापते रहते हैं तो हमें भी उससे उसी सुर में बात करनी चाहिए जिन्हें वह अच्छी तरह समझता है. आज अमेरिका जहाँ चाहे उसके इलाक़ों में हमले कर रहा है पर उससे मिलने वाली भीख के कारण आज पाक की सेना या किसी नेता में यह दम नहीं है कि वह खुले आम उसके ख़िलाफ़ कोई सशस्त्र प्रतिक्रिया कर सकें ? भारत को केवल अपने हितों के बारे में ही सोचना चाहिए और पाक जैसे पड़ोसी से किसी भी सद्भाव की बात सोचनी भी नहीं चाहिए.     
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

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