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रविवार, 25 अगस्त 2013

पुरुष मानसिकता और बयानबाज़ी

                               मुंबई रेप कांड के बाद जिस तरह से एक बार फिर से नेताओं की ज़बाने कुछ भी बोलने से नहीं चूक रही हैं और पुरुषों की घिनौनी हरक़तों का ठीकरा एक बार फिर से लड़कियों और महिलाओं के सर फोड़ने का प्रयास किया जाने लगा है उससे यही पता चलता है कि सदियाँ बीत जाने के बाद भी भले पहनावे और शिक्षा की दृष्टि से पुरुष अपने को बेहतर बताने का प्रयास करते रहते हैं पर आज भी वे उसी आदिम युग में ही जी रहे हैं जहाँ पर उन्हें नारी का उपभोग करने के अलावा उसकी कोई भूमिका समझ में ही नहीं आती है ? आख़िर क्या कारण है कि अपने को सभ्य और जीवंत शहर कहलाने वाले मुंबई और दिल्ली में भी इस तरह की घटनाओं पर कोई अंकुश नहीं लगाया जा पा रहा है जहाँ पूरे देश से लड़कियों अपने सपनों को पूरा करने के लिए आती रहती हैं ? हर बार किसी पुरुष में छिपे हुए पिशाच की इस हरक़त के बाद कुछ लोग उसी तरह से अपने बयान देने लगते हैं कि लड़कियों को शालीनता से कपडे पहनने चाहिए और समय से घर वापस आना चाहिए आदि आदि जिनसे इन लड़कियों में इस तरह से हीन भावना को ही बढ़ावा दिया जाता रहे ?
                               लड़कियाँ क्या पहने और क्या नहीं यह बताने की आवश्यकता किसी पुरुष को नहीं है क्योंकि कभी महिलाओं की तरफ से इस तरह की फालतू बातें नहीं की जाती है कि पुरुष क्या पहने और क्या नहीं ? किसी के दिमाग में अगर कोई ग्रंथि दबी पड़ी है तो उसके लिए क्या किसी दूसरे को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है ? पुरुषों को इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि कहीं से भी वे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण न करें क्योंकि जब संसद में बैठे हुए नरेश अग्रवाल जैसे नेताओं को भी इस तरह की मानसिकता के पीछे अपनी पुरातनपंथी सोच को आगे बढ़ाने का अवसर दिखाई देने लगती है तो नेताओं से देश क्या उम्मीद कर सकता है ? क्या नरेश जैसे नेता अपने घरों में लड़कियों को इस तरह से पहनावे के किसी बंधन में रख पाते हैं शायद यह उनके लिए भी बहुत मुश्किल होगा क्योंकि किसी को क्या पहनना है यह तय करने का अधिकार कम से कम लड़कियों को तो होना ही चाहिए और उसमें पुरुषों को किसी भी स्तर पर अपनी चौधराहट नहीं दिखानी चाहिए.
                              बात यहाँ पर पुरुष मानसिकता की इसलिए भी है क्योंकि जब भी ऐसी घृणित घटना होती है तो समाज के किसी भी क्षेत्र में बैठे प्रभावशाली पुरुषों द्वारा जिस तरह से महिलाओं को ही इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराने की कोशिशें शुरू हो जाती हैं जिससे समाज के ही उन पुरुष प्रधान मानसिकता से ग्रसित लोगों को यह लगने लगता है कि हाँ वास्तव में यह कमी तो लडकियों की तरफ़ से ही है और जब इतने बड़े स्तर के लोग ऐसा कह रहे हैं तो वही सही भी होगा ? ऐसे बयान कहीं न कहीं से उन अपराधियों के अपराध बोध को भी नष्ट कर दिया करते हैं जो कहीं से उनमें जन्म ले सकता है इस तरह के अनावश्यक बयानों से समाज में सुधार की बातें करने वाले और सब भूल जाया करते हैं. इन लोगों को क्या यह पता नहीं है कि देश के उन हिस्सों में भी रेप की घटनाएँ होती रहती हैं जहाँ महिलाएं पूरे वस्त्र पहनती और अनुशासित जीवन जीती हैं तो उन घटनाओं के लिए किसे ज़िम्मेदार ठहराया जाए ? जो ग़लत है वह देश के हर हिस्से में ही ग़लत है पर इस तरह से सामाजिक मान्यताओं की बातें करके अपने पापों को छुपाने की किसी भी कोशिश का समर्थन करने वाले हर व्यक्ति की समाज में कड़ी निंदा होनी हो चाहिए जिससे उन्हें यह पता चल सके कि कमी महिलाओं के पहनावे में नहीं पुरुषों की मानसिकता में है.          
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