डेबिट कार्ड के बढ़ते प्रचलन और उसके साथ ही इन कार्डों से तेज़ी से होती धोखाधड़ी से निपटने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के नए दिशा निर्देश आज १ दिसंबर से लागू हो रहे हैं जिससे जहाँ एक तरफ इनके उपयोगकर्ताओं को और अधिक सुरक्षा मिलेगी वहीं अभी तक आसानी से की जाने वाली धोखाधड़ी से भी कुछ हद तक मुक्ति मिल सकेगी. इस नए सुरक्षात्मक उपाय में अब ग्राहकों को अपना पिन डालना आवश्यक होगा तभी किसी भी तरह का भुगतान किया जा सकेगा जिससे किसी के हाथों तक डेबिट कार्ड पहुँच जाने या उसकी नक़ल के माध्यम से अब केवल कार्ड से भुगतान कर पाना सम्भव ही नहीं होगा. पिन का मतलब उस संख्या से है जो डेबिट कार्ड को उपयोग में लाने के लिए की जाती है और उसे ग्राहक के अतिरिक्त कोई भी नहीं जानता है जिससे अब आने वाले समय में इस तरह से की जाने वाली गड़बड़ियों को रोके जाने में महत्वपूर्ण सफलता मिल सकती है. देश में जिस तरह से डेबिट कार्डों के माध्यम से भुगतान में तेज़ी देखी जा रही है तो ऐसा कदम उठाया जाना बहुत आवश्यक भी था.
यह सही है कि इस तरह से भुगतान करना जहाँ के तरफ बहुत आसान है वहीं दूसरी तरफ इसके अपने खतरे भी है आज भी देश में डेबिट क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने की सही विधि अधिकांश लोग समझना ही नहीं चाहते क्योंकि जब उनके हाथों में यह जादुई कार्ड आ जाता है तो वे अपने को पूरी दुनिया का मालिक समझने लगते हैं. सभी बैंक अपने कार्ड के साथ ही इसको उपयोग करने के आवश्यक प्रपत्र भी ग्राहक को देते हैं पर उन्हें पढ़ने के स्थान पर अधिकांश लोग अपने जानकारों से ही कार्ड के उपयोग के बारे में जानकारी जुटाने की कोशिशें करते हुए देखे जा सकते हैं जिससे भी कई बार उन्हें पूरी प्रणाली कुछ पेचीदा लगती है तो वे कई बार पिन को अपने साथ लिखकर रखते हैं और बहुत बार तो कुछ लोग इतनी भयंकर भूल करते हैं कि कार्ड पर ही पिन तक लिख दिया करते हैं ? अब इस तरह के ग्राहकों को रिज़र्व बैंक तो क्या कोई भी मदद भी नहीं कर सकता है क्योंकि उन्होंने अपने खातों को जिस तरह से खुला छोड़ा हुआ है उस बारे में बैंकों को तो पता ही नहीं होता है और जानकारी होने का कोई साधन भी बैंकों के पास नहीं है.
वैसे तो बैंकों के इस तरह के भुगतान पूरी तरह सुरक्षित ही हुआ करते है पर अब जब ग्राहकों के द्वारा कैश काउंटर पर लगे बिक्री केन्द्रों पर ही अपने पिन को डालना अनिवार्य किया गया है तो उनकी सुरक्षा के लिए भी कुछ और सोचने की आवश्यकता होगी क्योंकि बहुत बार लोग अपने भुगतान की रसीद को भी लापरवाही से वहीं पर फ़ेंक दिया करते हैं जिसमें उनकी काफी कुछ जानकारी भी समाहित होती है तो कोई शातिर दिमाग का व्यक्ति खुले में पिन डालने से केवल चार अंकों को आसानी से समझ कर कार्ड संख्या के बारे में पता लगाकर सम्भवतः कुछ गड़बड़ी करने में सफल हो जाये ? इस मामले में पूरी सुरक्षा का लगभग ८० प्रतिशत ग्राहक के हाथों में होता है और बाकी का भुगतान लेने वाली फार्म से लगाकर बैंक तक का होता है. जो लोग बहुत अधिक लापरवाह हैं और इस बात को जानते हैं तो उन्हें अपने किसी एक खाते का ही उपयोग इस तरह के भुगतान के लिए करना चाहिए और उसमें अधिक धनराशि भी नहीं रखनी चाहिए क्योंकि यदि मुख्य खाते से इस तरह का सञ्चालन किया जाता है तो किसी भी धोखाधड़ी की स्थिति में बहुत बड़ा नुक्सान भी हो सकता है. रिज़र्व बैंक और सेवा देने व्वाले बैंकों ने अपनी तरफ से सुरक्षा का एक और आवरण ग्राहकों को दे दिया है अब यह ग्राहकों पर ही है कि वे इसका किस तरह से उपयोग करते हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यह सही है कि इस तरह से भुगतान करना जहाँ के तरफ बहुत आसान है वहीं दूसरी तरफ इसके अपने खतरे भी है आज भी देश में डेबिट क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने की सही विधि अधिकांश लोग समझना ही नहीं चाहते क्योंकि जब उनके हाथों में यह जादुई कार्ड आ जाता है तो वे अपने को पूरी दुनिया का मालिक समझने लगते हैं. सभी बैंक अपने कार्ड के साथ ही इसको उपयोग करने के आवश्यक प्रपत्र भी ग्राहक को देते हैं पर उन्हें पढ़ने के स्थान पर अधिकांश लोग अपने जानकारों से ही कार्ड के उपयोग के बारे में जानकारी जुटाने की कोशिशें करते हुए देखे जा सकते हैं जिससे भी कई बार उन्हें पूरी प्रणाली कुछ पेचीदा लगती है तो वे कई बार पिन को अपने साथ लिखकर रखते हैं और बहुत बार तो कुछ लोग इतनी भयंकर भूल करते हैं कि कार्ड पर ही पिन तक लिख दिया करते हैं ? अब इस तरह के ग्राहकों को रिज़र्व बैंक तो क्या कोई भी मदद भी नहीं कर सकता है क्योंकि उन्होंने अपने खातों को जिस तरह से खुला छोड़ा हुआ है उस बारे में बैंकों को तो पता ही नहीं होता है और जानकारी होने का कोई साधन भी बैंकों के पास नहीं है.
वैसे तो बैंकों के इस तरह के भुगतान पूरी तरह सुरक्षित ही हुआ करते है पर अब जब ग्राहकों के द्वारा कैश काउंटर पर लगे बिक्री केन्द्रों पर ही अपने पिन को डालना अनिवार्य किया गया है तो उनकी सुरक्षा के लिए भी कुछ और सोचने की आवश्यकता होगी क्योंकि बहुत बार लोग अपने भुगतान की रसीद को भी लापरवाही से वहीं पर फ़ेंक दिया करते हैं जिसमें उनकी काफी कुछ जानकारी भी समाहित होती है तो कोई शातिर दिमाग का व्यक्ति खुले में पिन डालने से केवल चार अंकों को आसानी से समझ कर कार्ड संख्या के बारे में पता लगाकर सम्भवतः कुछ गड़बड़ी करने में सफल हो जाये ? इस मामले में पूरी सुरक्षा का लगभग ८० प्रतिशत ग्राहक के हाथों में होता है और बाकी का भुगतान लेने वाली फार्म से लगाकर बैंक तक का होता है. जो लोग बहुत अधिक लापरवाह हैं और इस बात को जानते हैं तो उन्हें अपने किसी एक खाते का ही उपयोग इस तरह के भुगतान के लिए करना चाहिए और उसमें अधिक धनराशि भी नहीं रखनी चाहिए क्योंकि यदि मुख्य खाते से इस तरह का सञ्चालन किया जाता है तो किसी भी धोखाधड़ी की स्थिति में बहुत बड़ा नुक्सान भी हो सकता है. रिज़र्व बैंक और सेवा देने व्वाले बैंकों ने अपनी तरफ से सुरक्षा का एक और आवरण ग्राहकों को दे दिया है अब यह ग्राहकों पर ही है कि वे इसका किस तरह से उपयोग करते हैं.
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