मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

पुरुष मानसिकता और कानून

                                                                         दिल्ली में अमेरिकी टैक्सी सेवा देने वाली कम्पनी उबर के एक चालक द्वारा जिस तरह से एक महिला के साथ दुराचार किया गया उसके बाद एक बार फिर से खासतौर से दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंताएं सामने आने लगी हैं. इस मामले में गृह मंत्रालय ने जिस तरह से कम्पनी के खिलाफ प्रतिबन्ध लगाने की दिल्ली पुलिस को अनुमति दे दी है उसके बाद यही लगता है कि आने वाले समय में इस मुद्दे की असली समस्या को दूर करने के स्थान पर सरकार ने केवल दिखावे वाले कदम उठाने की तरफ ही बढ़ना शुरू कर दिया है. बिना किसी तरह की जांच पूरी किये केवल एक चालक की हरकतों के कारण ही पूरी सेवा को प्रतिबंधित करने के निर्णय को किसी भी स्तर पर समझदारी भरा नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इससे पहले से ही कानूनी मामलों में अजीब तरह का व्यवहार करने वाले भारतीयों के बारे में विदेशों में कोई अच्छी छवि नहीं बनने वाली है. सरकार के इस तरह के कदम पूरी तरह से दुनिया में भारत की छवि को धक्का पहुँचाने वाले ही साबित होने वाले हैं और पीएम जिस भारत की परिकल्पना के साथ दुनिया को समझाने में लगे हैं उस पर भी संकट दिखाई दे रहा है.
                                          आज भी देश में जिस तरह से भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है उसके लिए पूरी तरह से हमारे समाज में लड़कियों/महिलाओं के मुकाबले लड़कों/ पुरुषों को अधिक माना जाना ही ज़िम्मेदार है आज भी हमारे घरों में लड़कियों को लड़कों से कमतर ही माना और  समझा जाता है और जो लड़के बचपन से ही अपनी बहनों या परिवार की अन्य महिलाओं के साथ घर के पुरुषों के व्यवहार को देखते आ रहे हैं उनके लिए बड़े होने के बाद अपनी मानसिकता में परिवर्तन कर पाना बहुत ही कठिन साबित होने वाला है. हम सामाजिक बुराई से जिस तरह से कानूनी स्तर पर निपटने की कोशिशें कर रहे हैं आज उनका कोई मतलब नहीं है. भारत में "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" को केवल मौखिक रूप से मानने वाले समाज के लिए इससे अधिक शर्म की बात कुछ भी नहीं हो सकती है कि हम महिलाओं की सुरक्षा के स्तर पर केवल बातें करने से आगे नहीं बढ़ पाते हैं और आज की इस तरह की घटनाएँ केवल हमें वैश्विक स्तर पर कलंकित करने का काम ही किया करती हैं.
                                         उबर पर प्रतिबन्ध लगाया जाना समझ से पर है क्योंकि ऐसा भी नहीं है कि इस कम्पपनी के खिलाफ ऐसे कई मामले बन चुके हैं और वह अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे भाग रही है फिर सरकार को इस तरह के अतिवादी क़दमों से बचने के बारे में ही सोचना चाहिए. अच्छा होता कि उबर को नोटिस जारी की जाती और उसके सभी चालकों के बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी एकत्रित करने के बारे में कहा जाता. सार्वजनिक परिवहन से जुड़े हुए चालकों के लिए एक कम विशेष तौर पर करने की आवश्यकता है कि जिस भी व्यक्ति का लाइसेंस बने उसके लिए आधार लिंक पहचान को अनिवार्य कर दिया जाये तथा कम्पनी या वहां स्वामी के पास चालक की आधार संख्या आवश्यक रूप से होनी चाहिए जिससे किसी भी अप्रिय स्थिति में चालक के बारे में सूचना मिलने में पुलिस को अधिक खोजबीन न करनी पड़े. इस तरह की सूचना को एक राष्ट्रीय पोर्टल के माध्यम से देश भर की पुलिस के लिए उपलब्ध करने के बारे में भी सोचा जाना चाहिए क्योंकि किसी भी अपराध के बाद अपराधी की पहचान का संकट ही आज दोषियों को सजा दिलवाने की दिशा में सबसे बड़ी बाहड़ा के रूप में सामने आता है.        
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