कोरोना संक्रमण को नियंत्रित के लिए केंद्र सरकार द्वारा लॉक डाउन के चौथे चरण की घोषणा के साथ यह स्पष्ट हो गया है कि अब नागरिकों को खुद को और अधिक अनुशासित करते हुए सामाजिक जीवन में अपने कार्यों को सम्पादित करने के लिए तैयार होना होगा. अभी तक देश के अधिकांश भागों में जिस तरह से अधिसंख्य जनसंख्या ने इसको अच्छे से माना है तो अब इस चरण में हम सभी की यह ज़िम्मेदारी बनती कि अपने समाज और देश हित में सरकार के निर्देशों को समझते हुए अपने आवश्यक कार्यों को करें जिससे इस बीमारी की रोकथाम को प्रभावी ढंग से सुनिश्चित किया जा सके. सरकार के पास दिशा निर्देश जारी करने के आलावा और कुछ ख़ास नहीं है अब यह हम नागरिकों पर ही निर्भर करता है कि हम इन निर्देशों पर कितना अमल करके खुद को आगे बढ़ाने का काम सही ढंग से कर पाते हैं.
लॉक डाउन के सभी चरणों में अभी तक यह देखा गया है कि सरकार की मंशा के अनुरूप अधिकारियों को काम करने में अत्यधिक कठिनाई हो रही है क्योंकि अभी तक कोरोना से निपटने के लिए विभिन्न तरह के प्रयोग पूरी दुनिया में किये जा रहे हैं जिससे कई बार कहीं पर कुछ ऐसे निर्देश भी जारी हो जाते हैं जिनसे उनका अनुपालन कराया जाना मुश्किल हो जाता है. साथ ही केंद्र और राज्य मुख्यालय द्वारा सीधे नज़र रखने से इन अधिकारियों के लिए भी समस्या हो जाती है क्योंकि टीवी पर घोषणा करने के बाद जब तक लिखित आदेश जारी होता है तब तक जनता उसको सरकार का आदेश मानकर अपनी मनमानी करने लगती है. अधिकारियों के पास किसी आदेश को लागू करने का अधिकार तभी होता है जब सरकार से स्पष्ट शासनादेश मिल जाए. बेशक देश में डिजिटल प्रणाली का उपयोग बढ़ा है पर अभी भी इन आदेशों पर तेज़ी से अमल करने के मामले में अधिकारियों को उतने अधिकार नहीं मिले हैं जिससे आज भी वे पुरानी पद्धति से काम करने को बाध्य हैं.
केंद्र और राज्य सरकारों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसके आदेश का अनुपालन कराने के लिए जनता के सामने खड़े अधिकारियों को भी आदेश पर अमल करने के लिए अपने तंत्र को सक्रिय करना होता है इसलिए शासन के स्तर से भले ही कुछ देरी के साथ आदेश जारी किये जाएं पर जिन आदेशों को पारित किया जाये वे पूरी तरह से विचार विमर्श के बाद ही अनुपालन में लाएं जाएँ। अभी तक यह देखा जा रहा है कि सुबह और शाम तक आदेशों में कई बार बदलाव होने से जनता में भ्रम की स्थिति होती है और अधिकारी भी शासन की मंशा को सही ढंग से लागू नहीं करवा पाते हैं जिससे कई जगहों पर जनता और प्रशासन में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. सरकार अपने स्तर से इस बिंदु पर अधिक ध्यान दे जिससे अधिकारियों का काम आसान हो सके और जनता भी उसको समझ कर उन पर अमल कर सके. इस समय मीडिया का रोल भी और गंभीर होना चाहिए क्योंकि ब्रेकिंग न्यूज़ के चक्कर में कई बार टीवी पर ऐसा कुछ प्रसारित हो जाता है जो आदेशों में कहीं से भी सामने नहीं आता है. जनता को भी सरकारी आदेशों की प्रति देखने के बाद अधिकारियों से तुरंत परिवर्तन की आशा नहीं करनी चाहिए क्योंकि दिल्ली या राज्य मुख्यालयों से जारी आदेशों को निचले स्तर तक पहुंचाने हेतु समय भी चाहिए होता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
लॉक डाउन के सभी चरणों में अभी तक यह देखा गया है कि सरकार की मंशा के अनुरूप अधिकारियों को काम करने में अत्यधिक कठिनाई हो रही है क्योंकि अभी तक कोरोना से निपटने के लिए विभिन्न तरह के प्रयोग पूरी दुनिया में किये जा रहे हैं जिससे कई बार कहीं पर कुछ ऐसे निर्देश भी जारी हो जाते हैं जिनसे उनका अनुपालन कराया जाना मुश्किल हो जाता है. साथ ही केंद्र और राज्य मुख्यालय द्वारा सीधे नज़र रखने से इन अधिकारियों के लिए भी समस्या हो जाती है क्योंकि टीवी पर घोषणा करने के बाद जब तक लिखित आदेश जारी होता है तब तक जनता उसको सरकार का आदेश मानकर अपनी मनमानी करने लगती है. अधिकारियों के पास किसी आदेश को लागू करने का अधिकार तभी होता है जब सरकार से स्पष्ट शासनादेश मिल जाए. बेशक देश में डिजिटल प्रणाली का उपयोग बढ़ा है पर अभी भी इन आदेशों पर तेज़ी से अमल करने के मामले में अधिकारियों को उतने अधिकार नहीं मिले हैं जिससे आज भी वे पुरानी पद्धति से काम करने को बाध्य हैं.
केंद्र और राज्य सरकारों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसके आदेश का अनुपालन कराने के लिए जनता के सामने खड़े अधिकारियों को भी आदेश पर अमल करने के लिए अपने तंत्र को सक्रिय करना होता है इसलिए शासन के स्तर से भले ही कुछ देरी के साथ आदेश जारी किये जाएं पर जिन आदेशों को पारित किया जाये वे पूरी तरह से विचार विमर्श के बाद ही अनुपालन में लाएं जाएँ। अभी तक यह देखा जा रहा है कि सुबह और शाम तक आदेशों में कई बार बदलाव होने से जनता में भ्रम की स्थिति होती है और अधिकारी भी शासन की मंशा को सही ढंग से लागू नहीं करवा पाते हैं जिससे कई जगहों पर जनता और प्रशासन में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. सरकार अपने स्तर से इस बिंदु पर अधिक ध्यान दे जिससे अधिकारियों का काम आसान हो सके और जनता भी उसको समझ कर उन पर अमल कर सके. इस समय मीडिया का रोल भी और गंभीर होना चाहिए क्योंकि ब्रेकिंग न्यूज़ के चक्कर में कई बार टीवी पर ऐसा कुछ प्रसारित हो जाता है जो आदेशों में कहीं से भी सामने नहीं आता है. जनता को भी सरकारी आदेशों की प्रति देखने के बाद अधिकारियों से तुरंत परिवर्तन की आशा नहीं करनी चाहिए क्योंकि दिल्ली या राज्य मुख्यालयों से जारी आदेशों को निचले स्तर तक पहुंचाने हेतु समय भी चाहिए होता है.
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