आख़िरकार सीबीआई ने दूर संचार २ जी स्पेक्ट्रम घोटाले में आरंभिक जाँच में सबूत मिलने के बाद पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री ए राजा को गिरफ्तार कर ही लिया. अभी तक जिस तरह से राजा के खिलाफ़ सबूत मिल रहे थे उनको देखते हुए इस बात का एहसास तो हो ही गया था कि आने वाले समय में राजा के लिए बहुत मुश्किलें खड़ी होने वाली है. यह सही है कि इस पूरे मामले में कई सरकारों ने इस बात का ध्यान ही नहीं रखा कि नीतियों का पुनर्निधारण करके राजस्व में बहुत बढ़ोत्तरी की जा सकती है ? जिस तरह से दूर संचार के क्षेत्र में निरंतर प्रगति होती चली गयी उसको देखते हुए इस तरह से पुरानी नीतियों से लाभ उठाने के बारे में कम्पनियां सोचने भी लगी थीं.
सवाल यह नहीं है कि आख़िर क्यों इतने दिनों तक सरकार चुप रही बल्कि सवाल यह है कि नेता तो इन तथ्यों से अनजान होते हैं पर जिन नौकरशाहों पर अरबों रूपये खर्च किये जाते हैं और जिन पर इस बात का दारोमदार भी होता है कि वे नियमों को पूरी दुनिया में बदलाव के साथ फिर से सामंजस्य बिठाने के लायक बनाते रहें और सरकार के राजस्व में बढ़ोत्तरी करते रहें आख़िर उन्हें क्या हो गया था ? जब देश के प्रति निष्ठां की शपथ लेने के बाद भी ये लोग इस तरह से देश के साथ घात करते रहते हैं तो फिर जनता किससे उम्मीदें रखे ? सबसे बड़ी बात यह रही कि तत्कालीन ट्राई के प्रमुख ने भी इसी तरह से काम किया ? जिन लोगों पर देश की ज़िम्मेदारी है वही घुन बनकर देश के भविष्य को चाटने में लगे हुए हैं ? अगर इन सभी लोगों को इसी तरह से काम करना है तो जनता किससे आशा रखे ?
सबसे बड़ी बात जो देश में होनी चाहिए वह यह है कि नेता अपने मन से काम करते हैं अधिकारियों को किसी की सुननी नहीं है जनता के साथ सभी छल कर रहे हैं तो आख़िर कहाँ से उम्मीद रखी जाए ? जिस संसद से यह अपेक्षा है कि वह इन सभी पर पूरी नज़र रखे वह बहुत आसानी से गतिरोध का शिकार हो जाती है ? संसद की कार्यवाही में सांसदों को बहुत रूचि नहीं है जब सदन चल रहा होता है तो भी लोग वहां जाकर बैठना नहीं चाहते हैं ? जब ये माननीय वहां जाते ही नहीं हैं तो देश के बारे में ये कैसे सोच पायेंगें ? इनकी सोच चाहे जैसी भी हो पर देश के लिए तो घातक ही है ? अब भी समय है अगर संसद से इसको सुधारने का प्रयास किया जाए तो पूरे देश में यह सन्देश जा सकता है कि अब हमारे सभी सांसद अपने देश के लिए पूरा समय देने के लिए तैयार हैं ? पर क्या ऐसा हो पायेगा ? शायद नहीं क्योंकि सभी को केवल अपनी चिंता है और देश के बारे में सोचने का समय अधिकतर के पास है ही नहीं........
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सवाल यह नहीं है कि आख़िर क्यों इतने दिनों तक सरकार चुप रही बल्कि सवाल यह है कि नेता तो इन तथ्यों से अनजान होते हैं पर जिन नौकरशाहों पर अरबों रूपये खर्च किये जाते हैं और जिन पर इस बात का दारोमदार भी होता है कि वे नियमों को पूरी दुनिया में बदलाव के साथ फिर से सामंजस्य बिठाने के लायक बनाते रहें और सरकार के राजस्व में बढ़ोत्तरी करते रहें आख़िर उन्हें क्या हो गया था ? जब देश के प्रति निष्ठां की शपथ लेने के बाद भी ये लोग इस तरह से देश के साथ घात करते रहते हैं तो फिर जनता किससे उम्मीदें रखे ? सबसे बड़ी बात यह रही कि तत्कालीन ट्राई के प्रमुख ने भी इसी तरह से काम किया ? जिन लोगों पर देश की ज़िम्मेदारी है वही घुन बनकर देश के भविष्य को चाटने में लगे हुए हैं ? अगर इन सभी लोगों को इसी तरह से काम करना है तो जनता किससे आशा रखे ?
सबसे बड़ी बात जो देश में होनी चाहिए वह यह है कि नेता अपने मन से काम करते हैं अधिकारियों को किसी की सुननी नहीं है जनता के साथ सभी छल कर रहे हैं तो आख़िर कहाँ से उम्मीद रखी जाए ? जिस संसद से यह अपेक्षा है कि वह इन सभी पर पूरी नज़र रखे वह बहुत आसानी से गतिरोध का शिकार हो जाती है ? संसद की कार्यवाही में सांसदों को बहुत रूचि नहीं है जब सदन चल रहा होता है तो भी लोग वहां जाकर बैठना नहीं चाहते हैं ? जब ये माननीय वहां जाते ही नहीं हैं तो देश के बारे में ये कैसे सोच पायेंगें ? इनकी सोच चाहे जैसी भी हो पर देश के लिए तो घातक ही है ? अब भी समय है अगर संसद से इसको सुधारने का प्रयास किया जाए तो पूरे देश में यह सन्देश जा सकता है कि अब हमारे सभी सांसद अपने देश के लिए पूरा समय देने के लिए तैयार हैं ? पर क्या ऐसा हो पायेगा ? शायद नहीं क्योंकि सभी को केवल अपनी चिंता है और देश के बारे में सोचने का समय अधिकतर के पास है ही नहीं........
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बहुत खुशी की बात है। ऐसे लोगों को शरेआम फाँसी पर लटकाना चाहिये। आभार।
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