सोमवार, 5 जनवरी 2009
सर्व जन दुखाय... न्यून जन सुखाय
"सर्व जन हिताय" का नारा कितना आकर्षक हो सकता है और उसे और आकर्षक बनाने के लिए सरकारें कितनी उत्सुक रहती हैं इसका ताज़ा उदाहरण उ० प्र० में १५ रु० में १०० मिली लीटर देशी मदिरा से अच्छा कुछ भी नहीं हो सकता है. मदिरा पान एक सामाजिक बुराई है इसे सरकारें मात्र अपने राजस्व के चक्कर में कम करना या रोकना ही नहीं चाहती हैं. बहुजन की सरकार अगर चाहती तो देशी मदिरा के दाम कम नहीं करती पर लोगों तक अगर मदिरा नहीं पहुँचेगी तो सरकार को अपने खर्च चलने के लिए पैसे कहाँ से मिलेंगे ? वैसे भी मनोज गुप्ता हत्याकांड के बाद से इनकी एक दूकान तो मंदी की चपेट में आ गई है. सरकार चलाना एक बात है और सामाजिक सरोकारों से वास्ता रखना दूसरी बात है. प्रदेश की वर्तमान मुखिया के तेज़ स्वभाव को देखते हुए यह लग रहा था की शायद एक बार पूरा बहुमत मिलने पर ये अच्छी प्रशासक साबित होंगीं पर उनकी यह पारी अब तक की सबसे ख़राब ही साबित हुई है. आंकडों में मुलायम सरकार से आगे निकलने की जुगत और दिल्ली में सरकार बनाने की जल्दी ने प्रदेश को एक अँधेरी सुरंग की तरफ़ धकेल दिया है. जब उनका ध्यान प्रधान-मंत्री की कुर्सी पर है तो प्रदेश में रोज़ ही निरंकुशता हावी होती जा रही है. पुलिस और प्रशासन जिस तरह से नेताओं के आगे नत मस्तक है वह देश के लिए अच्छा संकेत नहीं है. ठेकेदारों से मिलीभगत के कारण ही प्रदेश में ई डिस्ट्रिक्ट परियोजना पूरी तरह से विफल साबित हुई है. आज हर नेता को अपना हिस्सा चाहिए और नहीं मिलने पर कोई तिवारी बन जाता है. जब ५० लाख के टिकट से करोड़ों खर्च करके जीते हैं तो सरकार तो पूरा नहीं करेगी ? अब अगला चुनाव भी लड़ना है और जो खर्च किया है उसे पूरा भी करना है तो रंगदारी से अच्छा और क्या होगा ? वाह रे सर्व जन हिताय सभी के हित के लिए सभी को दांव पर लगा दिया ... कुछ दिनों के बाद लोकसभा के चुनाव आ रहे हैं और हम जागरूक लोग अपने घरों में घुसे रहेंगे शायद ही वोट देने जाएँ ? बहुत हो चुका ऐसा नाकारापन अब तो चेत जाओ कहीं ऐसा न हो कि ये नेता हमारा जीना ही मुश्किल कर दें....
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