अभी लोकसभा के चुनाव पूरे नहीं हुए हैं और बहुत सारे नेता भविष्य की आहट लेने में लगे हुए हैं। दूसरे दलों की तारीफ करना किसी नेता को व्यक्तिगत तौर से अच्छा बताना आज कल काफी दिखाई दे रहा है। जिस तरह से किसी को भी बहुमत का आंकडा नहीं दिखाई दे रहा उस तरह सभी अपना नम्बर भी बढ़ाना चाहते हैं। जो भी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगा उसे ही सरकार बनने के लिए बुलाया जाएगा। इस परिस्थिति में कोई भी किसी को दूर नहीं रखना चाहता है। देश का यह दुर्भाग्य ही है कि आपस में लड़कर एक दूसरे पर कीचड़ उछाल कर संसद में पहुँचने वाले किस तरह से गल बहियां करने लगते हैं और जनता अपने को ठगा सा महसूस करती है। यदि इस तरह से ही सरकार बनानी हो तो सभी दलों को उनकी संख्या के अनुसार पद दिए जाने चाहिए और एक राष्ट्रीय सरकार का गठन करना चाहिए जिससे सभी को काम करने का अवसर मिल सके और कोई भी समर्थन वापस न ले सके। इस तरह से देश चुनाव के बोझ से बचा रहेगा और जिस दल के लोग अच्छा काम करेंगें उनको जनता पूरी तरह से अगली बार चुन सकती है। नेताओं की ग़लती की सज़ा आख़िर इस देश की जनता भोगे तो क्यों ? फिर भी यह देश अपने आप में अनूठा है जो कभी भी कुछ भी देख सुनकर कुछ भी झेल सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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