आज के समय में इस देश को क्रिकेट ने जिस तरह से जकड़ रखा है वह निश्चित ही चिंता का विषय है। खेल अगर खेल रहे तो वह बहुत अच्छा होता है पर जब वह एक संस्था से ऊंचा होकर बड़े फैसले करने वाला हो जाता है तो निश्चित ही वह स्थिति अच्छी नहीं होती। आज हमारे क्रिकेट के जूनून के कारण ही दुनिया में इस खेल को चलाने का ज़िम्मा सँभालने वाली संस्था भी हमारी भावनाओं की अनदेखी नहीं कर पाती है। चुनाव से पूर्व जिस तरह से आई पी एल ने देश की सुरक्षा से जुड़े मामलों पर अपनी पैरवी की उसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। यह देश की संस्थाएं नहीं तय कर सकती की कौन सा काम महत्वपूर्ण है। सरकार के मना करने पर ही यह प्रतियोगिता दक्षिण अफ्रीका गई। आज क्या कोई इस बात पर भी सोच रहा है कि जब इस देश से ही क्रिकेट को सबसे ज़्यादा पैसा मिलता है तो ये बड़े आयोजन तभी क्यों कराये जाते हैं जब हमारे देश में बच्चो के वार्षिक इम्तिहान का समय होता है ? कोई मोदी इस बात का जवाब दे सकते है ? अरे मैं ललित मोदी की बात कर रहा हूँ दूसरे वाले नहीं .... क्रिकेट ने इस देश के मध्यम वर्ग को बाज़ार बना दिया है अब शायद कभी ऐसा भी हो ५/५ ओवर्स का मैच भी शुरू हो जाए। मैं किसी खेल का विरोधी नहीं हूँ सभी को अपने को आगे बढ़ने के समान अवसर मिलने चाहिए पर क्या हम अपने सभी खेलों को समान अवसर दे पा रहे हैं...? बोर्ड को पैसा चाहिए और पैसे के चक्कर में कितने महत्वपूर्ण खिलाड़ियों का भविष्य चौपट हो रहा है यह किसी को देखना ही नहीं है। हमारी बेंच बहुत मज़बूत है कोई और आ जाएगा किसी और की जगह लेने.... पर किसी खिलाडी के सपने किस तरह से टूट जाते हैं यह कोई देखने वाला नहीं है। हाँ एक बात की खुशी ज़रूर होती है कि इस देश में एक रेल और दूसरा क्रिकेट ही है जो पूरे देश को जोड़ देते हैं वरना हम पता नहीं किन किन विवादों में पड़े रहते हैं।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
लेकिन इन सब के चक्कर में कुछ लोगों की तो मौज है
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति