आखिरकार मायावती को अपनी पुलिस की कमी दिखाई ही दे गई, कल फिर उन्होंने कड़ाई से निर्देश दिए की पुलिस का यह रवैया अब नहीं चलेगा। बात यहाँ पर रवैये की नहीं इच्छा शक्ति की है पुलिस से सरकार पता नहीं क्या करवाना चाहती है ? ऐसा नहीं की सरकार को कुछ पता ही नहीं होता कि कहाँ क्या हो रहा है ? माया ने जिस तरह से यह कहा कि व्यापार कर चौकियों की जगह पुलिस ने अपनी चौकियां स्थापित कर वसूली शुरू कर दी है अब यह नहीं चलेगा ? क्या बसपा जैसी कैडर आधारित पार्टी का कैडर भी अब भ्रष्टाचार में डूब गया है जो इस तरह की घटनाओं को समय से मुख्यमंत्री और पार्टी को नहीं बता रहा है ? अच्छी तरह से सरकार चलती रहे इसके लिए हमेशा ही पार्टी की ज़रूरत होती है पर देश में सरकारें अब अपने अनुसार चलती हैं न कि पार्टी के अनुसार।
आख़िर इतना हल्ला मचने के बाद माया ने भी मान लिया कि पुलिस हिरासत में अमानवीय व्यवहार किया जाता है। हिरासत में मौत के मामले में अब अफसरों को सीधे जेल जाना पड़ेगा अब कोई भी अपनी ज़िम्मेदारी दूसरे पर नहीं डाल पायेगा ? पुलिस से दलित कानून के दुरूपयोग रोकने की बात भी कही गई है... सवाल यहाँ यह नहीं कि इसका दुरूपयोग कहाँ और कैसे हो रहा है बल्कि यह है कि क्यों अचानक लोकसभा चुनावों के बाद इस कानून का दुरूपयोग बढ़ गया ? कारण साफ़ है कि बसपा को लग रहा था कि सवर्णों के चक्कर में उसका दलित वोट कांग्रेस के पास जा रहा है ? बस कुछ संदेश देने की आवश्यकता थी तो बस यही दे दिया गया कि दलित इस सरकार में सुरक्षित है पर जब दलितों के मामले इतने बढ़ गए कि अन्य तरफ़ से विरोध होने लगा तो यह लगा कि यह दांव भी उल्टा पड़ गया है बस फिर से पुलिस को ही डांट दिया गया है कि सब ठीक है और जो नहीं ठीक उसे अब ठीक कर दिया जाएगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
मैं पुलिस में नहीं हूं लेकिन भाई गलती पुलिस की नहीं है. राज्य सत्ताओं द्वारा पुलिस को जो रखिल बनाकर रख छोडा है उसकी गलती है. पुलिसवाला अगर गलती करे उसे कडा दंड दीजिये लेकिन पुलिस को काम तो करने दीजिये. टी.आई. विधायक के भतीजे का चालान कर देता तो जिले के सारे विधायक उस टी.आई. का तबादला करवाने के लिये एस.एस.पी. पर इतना दवाब बनाते हैं कि आखिरकार एस.एस.पी और टी.आई. दोनों ही जनपद से विदा हो जाते है. विधायक के भांजे की टक्कर साइकिल वाले से हो जाती है. भाजंजा साइकिल वाले को पीट देता है. वहां मौजूद पुलिसवाला जब विधायक के भांजे को पकडकर चौकी पर ले आता है तो वो भांजा उस पुलिस वाले पिटायी लगा देता है. बाद में स्थानांतरण अलग से. अब शहर मे एक छोटी सी घटना होती है- दो सम्प्रदायों के लडके आपस में लड जाते हैं वहां मौजूद पुलिसवाले दोनों लडकों को डांटकर भगा देते है. थोडी ही देर बाद दोनों सम्प्रदाय आमने-सामने आ जाते हैं और दंहा शुरू हो जाता है. बाद में पुलिसवालों को दोषी ठहराया जाता है कि उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की. अब बताये6 पुलिसवाले क्या करें. करें तो मरें न करें तो भीक मरें तो भाई जी ये सत्ता के दांत खाने के अलग हैं दिखाने के अलग. अगर वाकई कुछ करना है तो बस दो काम करें-पहला, पुलिस सुधार आयोग की रोपोर्ट लागू करें, दूसरे पुलिस को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त करें.
जवाब देंहटाएंजब तक राजनिति मे पारदर्शिता नही आएगी कुछ बदलने वाला नही,,,
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