गुरुवार, 27 अगस्त 2009
न्यायमूर्तियों की संपत्ति
आखिरकार बुधवार शाम को सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायमूर्तियों ने २ घंटे तक विचार करने के बाद इस बात पर सहमति ज़ाहिर की कि वे भी अपनी संपत्ति का ब्यौरा सर्वोच्च न्यायालय की वेब साईट पर डाल देंगें। अभी तक इस मामले पर अनावश्यक रूप से विवाद खड़ा किया जा रहा था। यह सही है कि कुछ हद तक कुछ मामलों में इन जजों पर भ्रष्टाचार का आरोप भी लगता रहा है पर केवल कुछ मामलों को लेकर ही पूरे तंत्र पर तो ऊँगली तो नहीं उठाई जा सकती पर आज के युग में प्रचार पाने के लिए किस तरह से लोग कुछ भी करने लगते हैं ? जजों का यह कहना कि इस तरह से संपत्ति का खुलासा उनके लिए एक नई मुसीबत लेकर आ सकता है कि कोई भी किसी न किसी तरह उनको भी विवादों में घसीटने की कोशिश करेगा ? अभी तक संपत्ति का ब्यौरा सभी जज मुख्य न्यायाधीश को दे देते हैं ऐसी परम्परा रही है। कर्नाटक और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालयों के जजों द्वारा संपत्ति कि स्वतः घोषणा से यह स्थिति आ गई थी कि सभी पर कुछ दबाव था पर कल के फैसले ने भारतीय न्याय तंत्र पर ऊँगली उठाने वालों का मुंह बंद ही कर दिया है। जजों के इस स्वागत योग्य कदम के बाद यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई कहीं इन सूचनाओं का बेजा इस्तेमाल न करने पाए। देश में पहले से ही न्यायालयों में जजों की कमी है और अगर कुछ न्यायाधीशों पर कोई केस करके उनको भी काम से रोकने की कोशिश करता है तो इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। यदि कोई स्वेच्क्षा से अच्छी परम्परा का वाहक बनना चाहता है तो उसकी रक्षा और परम्परा के पालन के लिए कोई प्रणाली तो होनी ही चाहिए।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का यह सामुहिक निर्णय ऐतिहासिक है। मुख्य न्यायाधीश स्वयं चाहते थे कि इस का न्यायाधीश स्वैच्छा से तथा सर्वसम्मति से निर्णय करें और न्यायिक जगत में यह एक परंपरा बने।
जवाब देंहटाएंकानून तो बहुत बनते हैं, लेकिन वे वास्तविक तभी होते हैं जब उन का स्वैच्छिक पालन हो। इस निर्णय ने न केवल न्यायिक जगत के लिए पर पूरे देश के लिए मार्ग खोल दिया है।