पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल क़दीर को कल कोर्ट के आदेश के बाद खुला छोड़ दिया गया। पिछले वर्षों में इस वैज्ञानिक ने राजनैतिक कारणों से नज़रबंदी में ही अपना समय बिताया था। वैज्ञानिक होना एक बात है पर अपनी जानकारी को ऐसे लोगों में बाँट देना बहुत खतरनाक है जो आज के सन्दर्भ में मानवता के खिलाफ एक तरह से हर स्तर पर संघर्ष छेड़ने का ऐलान करते घूमते हैं। विज्ञानं ने जहाँ मानव के जीवन को बहुत आसान किया वहीं उसके कुछ अविष्कारों के कारण मानवता के वजूद पर भी संकट मंडराता दिखाई दिया। परमाणु मुद्दा वास्तव में बहुत ही संवेदन शील है और इस से जुडी किसी भी बात को आसानी से नहीं लिया जा सकता। विनाश के बहुत सारे हथियार आज अमेरिका के पास हैं पर एक बात तो है कि वहां का शासन तंत्र किसी न किसी स्तर पर कहीं न कहीं तो बंधा हुआ है, पर जब बात होती है कुछ उन देशों की जहाँ पर अराजकता सी दिखाई देती है तो बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि इन विनाशक हथियारों की रक्षा कौन करेगा ? आतंकियों के हाथ पड़ कर ये हथियार बहुत विनाशक बन सकते हैं इस बात पर तो क़दीर खान ने भी विचार नहीं किया होगा। किसी की भी मेधा को चुनौती नहीं दी जा सकती है कोई भी प्रयास करने के बाद अपने को संपन्न बना सकता है पर क्या विद्वेष से भरे मन से मानवता के कल्याण की बातें निकल सकती हैं ? नहीं ! पर जब किसी का केवल लाभ ही उठाया जाता है तो वहां पर विद्रोह की संभावनाएं ही अधिक होती हैं। दुनिया ने खाड़ी के देशों का सदैव इस्तेमाल ही किया है अपने हितों के लिए इसलिए ही आज खाड़ी के देशों में वहां के शासकों के खिलाफ बहुत असंतोष भी है। सारे विश्व को एक नज़र से देखने की आवश्यकता है तभी शायद सारा कुछ सामान्य हो पाए। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि क़दीर खान अब अपने ज्ञान का ग़लत इस्तेमाल नहीं करेंगें पर उन्हें अब एक जिम्मेदार वैज्ञानिक होने का सबूत तो दुनिया को देना ही चाहिए।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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