पड़ोसी देश भूटान ने लोकतंत्र की तरफ़ बहुत ही सधे हुए कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। वहां पर जिस तरह से संसद के लिए चुनाव हुए थे उसके बाद वहां पर भी लोकतंत्र के झोंके आने लगे। भूटानी चुनाव आयोग ने एक क्रांतिकारी कदम उठाते हुए स्थानीय निकाय चुनाव में लड़ने से पहले नेताओं के लिए एक परीक्षा को पास करना अनिवार्य कर दिया है। किसी भी प्रत्याशी को पहले यह परीक्षा पास करनी होगी उसके बाद ही उसको उम्मीदवार बनने की योग्यता हासिल होगी। यह अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है कि लोकतंत्र के रास्ते पर धीरे-धीरे आगे आता देश अपने भविष्य को संवारने में बहुत सचेत है। यह सही है कि जब प्रत्याशी के लिए एक न्यूनतम योग्यता होगी तो उनमें एक अलग तरह की सोच भी होगी। अब बात अपने देश की करते हैं जहाँ पर हर बात में हर सुधार में नेता रोडे अटकाने में ही लगे रहते हैं, वैसे देखा जाए तो लोकतंत्र के साथ होने वाले इस मज़ाक को बंद ही कर देना चाहिए। अगर किसी स्तर पर ऐसा लगता है कि आज यह मानक लागू नहीं किए जा सकते तो कोई बात नहीं पर आगे आने वाले समय में एक समय सीमा तो निर्धारित की जा सकती है कि उस दिन के बाद से सभी को चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम योग्यता हासिल ही करनी होगी। देश इतना मजबूर नहीं है कि इन चंद अंगूठा टेक बिना सोच वाले नेताओं के बिना आगे न आ सके। वास्तव में इन लोगों को स्वयं ही जगह खाली कर देनी चाहिए कहीं ऐसा न हो कि जनता स्वयं ही आकर इनको पद से हटा दे ? फिल हाल में तो ऐसी कोई बात चल भी नहीं रही है कि जिससे ऐसा लगे कि हम इस मामले में भूटान की बराबरी करने की स्थिति में हैं पर एक बात तो तय है कि जहाँ चाह होती है वहीं राह निकलती है पर क्या बिना रीढ़ वाले नेताओं में है कोई चाह ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
काश भारत में भी इस तरह की परीक्षा का आयोजन हो पाता ताकि भारतीय लोकतंत्र को बहुत हद तक कुछ "महान" नेताओं से निजात तो मिल जाती।
जवाब देंहटाएंबहुत बडिया आलेख मगर कुछ भी कहें अपने नेताओं खैए 'महानता' का मुकाबला कोई नहीं कर सकता
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