परसों जिस तरह से राहुल गाँधी के वापस दिल्ली आते समय शताब्दी एक्सप्रेस पर शरारती तत्वों ने पथराव किया वह निश्चित ही चिंता का विषय है। आज जब सारे विशिष्ट लोगों में पैसे बचाने के लिए सस्ते विकल्पों पर विचार किया जा रहा है तो यह अच्छा ही है। जो बात समस्या पैदा कर रही है वह यह है कि इन सारे कार्यक्रमों के बारे में प्रचार किया जाना। अच्छा हो कि इस तरह के प्रयास किए जायें और यदि उनके बारे में बताना ज़रूरी है तो वापस आने के बाद यह बात बताई जाए जिससे इन लोगों की सुरक्षा के साथ कोई समझौता न होने पाए। देश के नेता जनता के साथ चलना सीखें यह अच्छा है पर इस अच्छाई के चक्कर में उनकी सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए। अभी पीछे डेनमार्क के राष्ट्रपति भारत आए थे तो वे भी एक व्यावसायिक उड़ान से ही भारत आए थे और उन्होंने इस बात का कोई प्रचार भी नहीं किया था। सुरक्षा से जुड़े भारतीय लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कहीं से भी विशिष्ट लोगों की सुरक्षा से जुड़ी बातें प्रेस तक न जाने पायें। साथ ही प्रेस का भी यह कर्तव्य बनता है कि यदि उनको किसी विशिष्ट व्यक्ति के बारे में ऐसा कुछ पता चल भी गया है तो उसे केवल सनसनी बनाकर तुंरत ही उसे न चलायें बल्कि उस यात्रा के दूसरे पहलुओं पर भी ध्यान देते हुए उसका उपयोग करें। कहीं ऐसा न हो कि अति उत्साह में दिखाई जाने वाली ख़बर किसी के लिए कोई समस्या बन जाए। अब सड़क पर चलती हुई ट्रेन की सुरक्षा कितनी की जा सकती है यह सभी को पता है साथ ही भारतीय रेल जिन दुर्गम स्थानों से होकर गुज़रती है वह भी सुरक्षा में समस्या पैदा कर सकते हैं अच्छा हो कि सभी अपनी मर्यादाओं को समझते हुए ही काम करें जिससे जनता के साथ नेताओं का चलना आम बात हो जाए तथा सुरक्षा से जुड़ी समस्याएं भी सामने न आयें। जब कुछ समय तक नेता जनता के साथ हो तो उन्हें भी देखना चाहिए कि वे कुछ समय तक यह भूल जायें कि वे किस पद पर हैं और अपनी सरकार के बारे में जनता से एक ईमानदार राय मांगने में भी न चूकें।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सहमत हूँ आपसे.
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