आज कल जिस तरह से देश की सीमाओं के असुरक्षित होने की बात सामने आ रही है वह सभी के लिए चिंता का विषय है। इस बात पर यहाँ इस ब्लॉग में कई बार लिखा जा चुका है। चीन को केवल शत्रु मानकर काम नहीं चलाया जा सकता इस लिए आज के आर्थिक युग में भारत को यह भी देखना होगा कि कहीं कल को चीन हमारे आर्थिक हितों पर चोट तो नहीं करने जा रहा है ? सीमाओं पर इस तरह की घटनाओं से वह कहीं हमें उलझाने की कोशिश ही तो नहीं कर रहा है ? सबसे अजीब बात तो यह है कि देश में देश की रक्षा से जुड़े कई मंत्रालय इस मामले पर अलग अलग सुर आलाप रहे हैं। जब बात सीमाओं की सुरक्षा की हो तो सोच अलग कैसे हो सकती है ? यदि कुछ मतभेद हैं भी तो उन पर एक निश्चित बात तय करके सारे तंत्र को उस पर ही अमल करना चाहिए। देश की सीमायें कोई राजनैतिक दलों की सरकारें नहीं हैं जो जब भी चाहें चाहे जैसे व्यवहार करती रहें ? यदि चीन की तरफ़ से वास्तव में घुसपैठ हुई है तो सरकार को एक जगह से साफ कर देना चाहिए कि हाँ ऐसा हुआ था और आगे ऐसा न हो इस बात के लिए एक ठोस नीति बना दी गई है। पर सरकार पता नहीं किस दबाव में ऐसा कर रही है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि आगे आने वाली कुछ महत्वपूर्ण लोगों की यात्रा को देखते हुए सरकार यह नहीं चाहती कि उससे पहले चीन से रिश्ते ख़राब हों ? क्या आगे के ऐसे रिश्तों को ढोने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ भारत की ही है ? सरकार को साफ शब्दों में यह कहना चाहिए कि यदि इस तरह की घटनाएँ जारी रहती हैं तो आगे की बात चीत पर भी विचार किया जा सकता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि चीन भारत सरकार और विदेश मंत्रालय की इन कमजोरियों को जान चुका है तभी वह हर बार बात चीत से पहले कुछ इस तरह की हरकत करने से बाज़ नहीं आता है ? अब आज के समय में बात चाहे जो भी सच हो पर सरकार को एक सुर में बोलना चाहिए और यदि वास्तव में कुछ मतभेद हैं तो उनका समाधान करना चाहिए। मनमोहन सरकार ने बहुत अच्छे काम किए हैं पर इस तरह के काम उसकी अच्छी छवि पर दाग लगाते हैं।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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