एक पुरानी कविता यहाँ पर प्रस्तुत है.....
जब विचार मन में हों उलझे,
और बुद्धि को भ्रम भारी,
मिलती नहीं राह जब कोई,
बढ़ती जाती फिर लाचारी,
आगे बढ़ने के प्रयास में,
ठोकर पल-पल लगती है,
मुझसे मत पूछो तुम आकर,
टीस मुझे क्यों उठती है ?
है उदार अब अर्थ-नीति,
हम स्वागत में लगते बिछने,
पूंजी के बढ़ते प्रवाह में,
लगे आंकड़े स्वच्छ सलोने
घटती मुद्रा की स्फीति,
भूख कुलांचे भरती है
मुझसे मत पूछो तुम आकर,
टीस मुझे क्यों उठती है ?
ठेके वाले और अधिकारी-नेता,
का गठजोड़ बना है
कर चोरों की मौज हुई,
और आम आदमी अदना है,
तीन महीने मात्र पुरानी,
सड़क उधड़ने लगती है
मुझसे मत पूछो तुम आकर,
टीस मुझे क्यों उठती है ?
नई सदी में क्या कुछ सीखा,
कैसे कहें और कितना ?
शिक्षा के ऊँचे आयाम में,
हम तो गिर गये हैं इतना,
महिलाओं की ध्वनियां भी,
जब और सिसकने लगती हैं
मुझसे मत पूछो तुम आकर,
टीस मुझे क्यों उठती है ?
बम विस्फोटों से मरते हैं,
कौन कहीं कब रोता है ?
मेरा मन जब ख़ून के धब्बे,
फिर आंसू से धोता है
राष्ट्रवाद की होली जब भी,
"मत" की आग में जलती है
मुझसे मत पूछो तुम आकर,
टीस मुझे क्यों उठती है ?
भगत, सुभाष, राजगुरु, बिस्मिल,
और नरेन्द्र की थाती हैं
गांधी, नेहरू और बल्लभ की,
फिर से आई पाती है
युवा शक्ति जब देश भूलकर,
बस ज़ुल्फों में फंसती है
मुझसे मत पूछो तुम आकर
टीस मुझे क्यों उठती है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है... बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है आज की व्यवस्था पर सीधी चोट हर अच्छा इन्सान दुखी है मेरी भी हर धडकन भारत के लिये है शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंनहीं पूछेंगे(भाई कैसे कह दूं?) टीस क्यों उठती है?
जवाब देंहटाएंसुन्दर !!!
बेहतरीन रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है आज की व्यवस्था पर सीधी चोट
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