मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

सर्वोच्च न्यायलय की अनदेखी

आज अभी थोड़ी देर पहले सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को जिस तरह से फटकारा है वह अपने आप में महत्वपूर्ण है। सरकार से यह भी पूछा गया है कि ८ सितबर के बाद किससे पूछ कर कैसे काम किया जा रहा है ? शायद देश के इतिहास में पहली बार कोर्ट को इतनी सख्त भाषा का प्रयोग करना पड़ा है साथ ही किसी आदेश के लिए पहली बार ही ६ घंटे का समय देते हुए कहा है कि सारा पार्क इतने समय में खाली हो चाहिए । देश में केवल राजनीति ही ऐसी अविश्वसनीय चीज़ रह गई है जहाँ पर नैतिकता का कोई भी स्थान नहीं रह गया है। कोर्ट ने जब सरकार को अनुमति दी थी तब सरकार ने चालबाजी करते हुए अपने हितों को साधने के लिए कई ऐसी विवादित इमारतों को भी तोड़ दिया जो आदेश से परे थीं। आज कोर्ट की सख्ती को देखते हुए सरकार भी मजबूर हो गई और उसने सीधे ही सारा काम रोकने का आदेश दे दिया। देश में चाहे कुछ होता रहे पर कोर्ट की इतनी खुली अवमानना करना क्या देश के हित में है ? वह भी एक लोकतंत्रक तरीके से चुनी हुई सरकार के द्वारा जिस पर संविधान के अनुपालन का सीधा सीधा उत्तरदायित्व है ? सरकारें क्या इस लिए ही चुनी जाती हैं कि वे जब चाहें जिसकी चाहें धज्जियाँ उड़ाती रहें ? यदि सरकार ऎसी ही होती हैं तो नहीं चाहिए ऐसी निकम्मी सरकारें हम बिना सरकारों के ही जी लेंगें ? क्यों नहीं नेता समझना चाहते कि देश में केवल वोट ही सब कुछ नहीं है ? दिल्ली में शीला दीक्षित की सरकार ने कोई मूर्तियाँ नहीं लगवायीं पर वे दोबारा शासन करने के काबिल पाई गयीं। दिल्ली के पुनर्निमाण में उनका योगदान सदैव ही याद किया जाएगा। सरकारें आती जाती रहती हैं पर जनता से जुड़े काम ही सरकार के काम का आइना होते हैं। अच्छा हो कि अब कोई भी सरकार इस तरह के काम न करे कि कोर्ट को ऐसी भाषा बोलनी पड़े जो बाद में सरकारों को अच्छी न लगे।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए तरह...

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