मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 22 नवंबर 2009

अन्तरिक्ष में गेंहूँ

कुछ सुना क्या ? अन्तरिक्ष में बैठे रूसी अन्तरिक्ष यात्री मक्सिम सुरयेव ने वहां पर गेंहूँ उगा लिया है ? कोई जापानी भाई साब वहां पर पहले से ही गोभी उगाये बैठे हैं। बताते हैं कि भारत के चंद्रयान की मदद से चाँद पर पानी का भी पता चल गया है .... वाह भाई वाह क्या ख़बर है ? अब मानव जहाँ चाहे वहां जाकर अपनी प्रतिभा के झंडे गाड़ सकता है। अब हम तो ठहरे गरीब देश तो इतनी मेहनत से भेजे गए यान से हमने गरीबों की सबसे जरूरी चीज़ पानी ही खोजने में मदद की। हमारे यहाँ तो बहुत सारे लोग शाम को पानी पीकर ही जिंदा रह जाते हैं। अब देखा कोई नहीं कह सकता कि वैज्ञानिक आधार की कमी है हमारे यहाँ पर.... अब अमेरिका को वहां पर भी परमाणु बम बनाने के लिए यूरेनियम चाहिए तो वो उसे ढूंढें हमारी तो सारी खोज पूरी हो गई अब जिसका जो मन चाहे करता रहे। सबसे खास बात तो यह रही कि सुरयेव भाई ने यह काम बिना अपने आकाओं से पूछे कर डाला। अब मुझे इस बात का पता करना है कि कहीं ये सुरयेव भारत के किसी आदमी को तो नहीं जानते हैं ? क्योंकि ऐसा चोरी छुपा जुगाड़ दुनिया में कोई और नहीं कर सकता है। फिल हाल सुना है कि उनकी इस चोरी भरी उपलब्धि को मान्यता दे दी गई है। अरे वो संजू बाबा वाली नहीं..... आप लोग भी न मुझे मरवा के छोड़ोगे क्या ? जितना लिखा जा रहा है उतना चुप से पढ़ लो मेरा ब्लॉग भी बंद करवाना चाहते हो क्या ?
अच्छा हुआ कि राकेश शर्मा के बाद कोई भारतीय वहां भेजा नहीं गया वरना पता नहीं क्या क्या कर डालते वहां पर ? सबसे पहले कुछ जुगाड़ बनाये जाते कि कोई खराबी होने पर अन्तरिक्ष केन्द्र से बाहर निकलने की ज़रूरत ही नहीं होती किसी जुगाड़ से अन्दर से ही ठीक कर देते। मुझे सबसे ज़्यादा खतरा तो इस बात का था कि कोई भारतीय अन्तरिक्ष यात्री ६ महीनों के लिए भेजा जाता और होली दिवाली जैसा त्यौहार मनाने भाई साहब किसी एलियन को पटा कर उसके जहाज़ से घर पर त्यौहार मनाकर वापस लौट जाते। नासा वाले भी तब जान पाते जब उनके साक्षात्कार हमारे २४ घंटे वाले न्यूज़ चैनेल "सबसे पहले" कह कर चलाना शुरू कर देते ? खोज करने पर बंदा वहीं पर अपने केन्द्र के कमरे में सोता हुआ मिलता। अब हमारी प्रतिभा और मेधा है ही ऐसी कि अच्छे अच्छे चकमा खा जायें... इनसे कहा जाता कि कुछ उगाने का काम करो पर ये लोग तो जुगाड़ से कुछ ऐसा बना रहे होते जो उनको त्योहारों पर ख़ुद ही घर तक लाने ले जाने का काम कर पाता। फिलहाल मज़ाक छोड़ो और संभल जाओ कहीं हमारे आपके घर की चीज़ें अन्तरिक्ष में पहुँच जाए और उनका पटेंट भी हो जाए। अब हर भारतीय अपने जुगाड़ का पटेंट कराने के लिए अन्तरिक्ष तक तो नहीं जा पायेगा ? फिर भी खुशी कि बात है कि भविष्य में हमारी भूमि पर भोजन की कमी होने पर अमीर लोग तो अन्तरिक्ष में जाकर रह सकेंगें और हम तो यहीं पर जुगाड़ से पानी पीकर काम चला लेंगें क्योंकि हमें तो अपनी रोटी बांटकर खाना ही सिखाया गया है दूसरों का हक मरना तो भारत की परम्परा कभी भी नहीं रही।

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

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