रुचिका गिरहोत्रा मामला रोज़ नए मोड़ लेता जा रहा है. इस मामले की जांच में लगे एक अधिकारी ने कहा है कि राठोर ने उन्हें रिश्वत देने की कोशिश की थी जिससे पता चलता है कि राठोर ने अपने पुलिसिया रुतबे का पूरा लाभ लेने की कोशिश भी की थी. उसने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रुचिका को स्कूल से तो निकलवा ही दिया था. फिर उसने अपने पद का दुरूपयोग कर जांच को भी प्रभावित करने का प्रयास किया. अभी तक इस मामले को इस सन्दर्भ में नहीं देखा गया है ज़ाहिर है इस खुलासे के बाद केस में कुछ नयी धाराएँ भी जोड़ी जा सकती हैं. सवाल एक रुचिका का नहीं है वरन सवाल हैं उन रुचिकाओं का जिनके घर परिवार या मित्र इस पुलिसिया तंत्र की कारगुजारियों के सामने हार मान लेते हैं या फिर उनके पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं होता और वे इसे अपनी नियति मान कर चुप हो जाते हैं. सवाल यह भी है कि जब पुलिस भी इस तरह से बर्ताव करती है तो जनता या पीड़ित लोग किसके पास जाएँ ? देश कि जनता के पास वैसे ही पुलिस से जुडी बहुत सारी शिकायतें होती हैं पर क्या वो पुलिस के इस तरह के अत्याचार को भी बर्दाश्त करे ? निश्चित तौर पर कोई ऐसी एजेंसी होनी चाहिए जो पुलिस के खिलाफ दर्ज होने वाले मामलों में तेज़ी से सुनवाई करे, साथ ही यह भी होना चाहिए कि इन मामलों कि तह तक जाकर दोषियों को कड़ी सजा दिलाई जाये जिससे कोई राठोर किसी रुचिका की तरफ आँख उठाकर भी न देख सके...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
निश्चित ही विचारणीय:
जवाब देंहटाएंयह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी