अमर सिंह के इस्तीफे के बाद से जिस तरह से दबी ज़ुबान में ही सही पार्टी में उनके खिलाफ लोग बोलने लगे हैं उससे यही लगता है कि यह प्रकरण पार्टी को दूर तक खींचना पड़ेगा. यह बात सभी लोग जानते हैं कि अमर सिंह एक बहुत अच्छे प्रबंधक हैं और ऐसी स्थिति में जब पार्टी अपने वजूद के लिए पहली बार संघर्ष करते हुए फिरोजाबाद में हारी तो उन पर उंगलियाँ उठनी स्वाभाविक ही हैं. और अमर जिस तरह से अपने को पार्टी में मानते हैं उससे उनको लगा कि उनकी प्रतिष्ठा पर बन आई है जिसके चलते उन्होंने दबाव या मजबूरीवश अपने सभी पदों से इस्तीफ़ा दे दिया. यह सही है कि अमर के कारण पार्टी में बहुत से लोग आये पर कहीं पर उनके भी फैसलों ने पार्टी से बेनी, आज़म जैसों को भी दूर कर दिया. संजय दत्त का इस्तीफ़ा इसी में अगली कड़ी के रूप में देखा जा सकता है. पार्टी में जया-द्वय को लाने का श्रेय भी अमर का ही है तो हो सकता है कि इनमें से भी कोई अमर के साथ चलते हुए अपने पद से इस्तीफ़ा दे दे. संजय और जया-द्वय में इतना फर्क है कि संजय केवल पार्टी में ही थे जबकि ये दोनों सांसद भी हैं. सपा जैसी पार्टी जो समाजवाद की अगुआ रही है धीरे धीरे अपनी गिरफ्त खो चुकी है उसके निर्णय अब पांच सितारा होटल की लक दक में लिए जाने लगे हैं. फिल हाल तो पार्टी में चाटुकार परेशान हैं और आम कार्यकर्ता बहुत खुश क्योंकि अब आम समाजवादी को नेता जी से मिलने में किसी अमर कथा की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. अभी तो पार्टी में राम गोपाल यादव भी खुल कर बोल रहे हैं यह भी तय है कि बिना नेताजी के इशारे के वे भी इतने आगे तक नहीं बोल सकते थे, लगता है कि मुलायम ने इस मामले में बहुत अधिक झुकने के स्थान पर आने वाली चुनौतियों का सामना करने का मन बना लिया है और वे जुझारू नेता हैं जो बात ठान लेते हैं करने का पूरे मन से प्रयास भी करते हैं. फिलहाल देश को सपा जैसी पार्टी की आवश्यकता है जो ज़मीन से जुड़े कार्यकर्ताओं से बनी है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
रहते थे कभी जिनके दिल मे.....!
जवाब देंहटाएंबैठे हैं उन्ही के कूजे में........!!