अपने लाभ के लिए लोग किस हद तक अमानवीय हो जाते है ऐसा अभी तक भारत में बहुत अधिक देखा जाता था पर यूरोप में जिस तरह से काउन्सिल ऑफ़ यूरोप ने स्वाईन फ्लू के बारे में दवा कंपनियों के खेल पर संदेह जताया है वह निश्चित ही चिंता का विषय है. पांच वर्ष पहले इस बीमारी को महामारी घोषित करवाने के लिए जिस तरह से दवा कंपनियों ने योजनाबद्ध तरीके से काम किया वह निंदनीय है. इन कंपनियों ने यूरोप की सरकारों को इस बात के लिए राज़ी कर लिया कि वे अपने यहाँ इसकी दवा खरीदने के लिए समझौते कर लें फिर बाद में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए इन लोगों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से इसको महामारी घोषित करा दिया. असली खेल बस यहीं पर खेला गया पहले तो इन लोगों ने समझौते किये और जब सरकारों ने समझौते कर लिए तो इनकी दवा की बिक्री भी पक्की हो गयी बस तभी इसे महामारी का दर्ज़ा दिला गया. इस सारे खेल में इस कंपनियों ने खूब चाँदी काटी. अब तो यह बात भी सामने आ रही है कि टैमीफ्लू नमक यह दवा भी सुरक्षा मानकों पर पूरी तरह से खरी नहीं उतरती है. बिना पूरे परीक्षणों के इसे सीधे ही मनुष्यों को खिलाना शुरू कर दिया गया. अब ऐसी स्थित में क्या किया जा सकता है जब निर्माता नियामक और सरकारें मिलकर ही जनता को धोखा देने पर आमादा हो जाये ? फिलहाल भारत में इस दवा को बनाने वाली कंपनी जी एस के से सख्ती से निपटा जाना चाहिए. बाहर के देशों में जो ग़लती हो गयी है उसे हमें अपने यहाँ नहीं दोहराना चाहिए. साथ ही भारत में बहुतायत से पाई जाने वाली औषधि भूम्यामलकी का प्रयोग किसी भी तरह के विषाणु के खिलाफ किये जाने की बात भी की जानी चाहिए क्योंकि इस औषधि में विषाणु को नष्ट करने की क्षमता ८० के दशक में ही वैज्ञानिक सिद्ध कर चुके हैं और उन लोगों की जानकारी के लिए जो इसे नहीं मानते और पश्चिमी देशों के विज्ञान को उन्नत मानते हैं यह बताना चाहूँगा कि यह ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने भी मान लिया है और भारत में आज के दिन विषाणु जनित यकृत रोग [Viral Hepatitis] बी में भी इसका बहुत अच्छा उपयोग किया जा रहा है. अच्छा हो इस खेल से बाहर निकला जाये और अपने देश में बनी और उपलब्ध दवाओं का पूरी तरह से प्रयोग किया जाये.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
साथ ही भारत में बहुतायत से पाई जाने वाली औषधि भूम्यामलकी का प्रयोग किसी भी तरह के विषाणु के खिलाफ किये जाने की बात भी की जानी चाहिए क्योंकि इस औषधि में विषाणु को नष्ट करने की क्षमता ८० के दशक में ही वैज्ञानिक सिद्ध कर चुके हैं और उन लोगों की जानकारी के लिए जो इसे नहीं मानते और पश्चिमी देशों के विज्ञान को उन्नत मानते हैं यह बताना चाहूँगा कि यह ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने भी मान लिया है और भारत में आज के दिन विषाणु जनित यकृत रोग [Viral Hepatitis] बी में भी इसका बहुत अच्छा उपयोग किया जा रहा है. अच्छा हो इस खेल से बाहर निकला जाये और अपने देश में बनी और उपलब्ध दवाओं का पूरी तरह से प्रयोग किया जाये.
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा कही जा रही इस बात का पूरा प्रचार प्रसार होना चाहिए .. सैकडों वर्षों से गुलामी का जीवन जीनेवाले भारतवासियों की अपनी हर जरूरत के लिए विदेशों की ओर ताकने की बुरी आदत समाप्त नहीं होनेवाली !!
bhaiya ji bahut achha likha hai...
जवाब देंहटाएं