अब फिर से देश के लिए एक अजीब सा काम हुआ पहले बालिका सशक्तिकरण के सम्बन्ध में छपे विज्ञापन में पाकिस्तानी फौजी की तस्वीर छाप दी गयी थी और आज रेलवे के एक विज्ञापन ने तो पूरे देश के भौगोलिक ज्ञान को ही नया कर दिया. इस विज्ञापन के अनुसार अब दिल्ली पाकिस्तान में तो ग्वालियर गुजरात में, कोलकाता और बांधवगढ़ अरब सागर में तो खजुराहो महाराष्ट्र में पहुँच गया है. जिन विज्ञापनों को छापने के लिए ये मंत्रालय इतना पैसा खर्च करते हैं क्या वहां पर इनकी निगरानी की कोई उचित व्यवस्था नहीं है जो इस तरह से बिना बात की बातों पर देश का उपहास कराया जाता है ? अगर ये मंत्रालय इतनी भारी भरकम राशि खर्च करके इस तरह के विज्ञापन दे सकते हैं तो इनकी निगरानी के लिए एक समुचित तंत्र क्यों नहीं बना सकते हैं ?
ऐसा नहीं है कि पहले विज्ञापन नहीं छपते थे पर लगता है कि अब ये कुछ घूसखोरी और भ्रष्टाचार के कारण ऐसे लोगों को मिलने लगे हैं जिनके पास समुचित ज्ञान नहीं होता है. इस तरह के अनर्गल विज्ञापन किस तरह से अखबारों में छाप भी दिए जाते हैं यह और भी चिंता का विषय है क्या अख़बारों के पास भी कोई इस तरह का तंत्र नहीं है कि वह इसकी निगरानी कर सके ? या वे भी केवल लोक तंत्र का एक खम्भा बनकर ही अपने आप में मगन हैं ? रेलवे का यह विज्ञापन भी आख़िरकार अख़बार में छपने से पहले किसी ने तो देखा ही होगा ? क्या उसका भारत के बारे में भी ज्ञान इतना सतही था कि वह यही नहीं जान सका कि कोलकाता कहाँ है जबकि यह कार्यक्रम कोलकाता में ही आयोजित होने वाला था ?
अब समय आ गया है कि इस तरह की समस्या से निपटने के लिए एक अलग से तंत्र बनाया जाये जिसको इस तरह के किसी भी विज्ञापन को जांचकर छपने के लिए भेजने की ज़िम्मेदारी हो. आखिर सरकार के विज्ञापनों में जनता का कीमती पैसा लगता है और उसकी इस तरह से बर्बादी क्यों की जाये ? यदि इसके बाद भी इस तरह की गलती सामने आती है तो उस दिन के सम्बंधित अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन से पूरे पैसों का हिसाब काट लिया जाये. आखिर और कोई चारा है इस तरह की लापरवाहियों से निपटने का ? तो अच्छा है कि इन पर पूरी ज़िम्मेदारी डाल कर निपटना सीखा जाये.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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