मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 21 मार्च 2010

मदरसों की हालत...

लखनऊ में चल रहे मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड में इसके अध्यक्ष मौलाना राबे हसन नदवी ने मदरसों में सरकारी हस्तक्षेप से बिलकुल इंकार कर दिया है. उन्होंने मुस्लिम समाज से गैर मुस्लिम समाज के मन से इस्लाम के बारे में फैली भ्रांतियां दूर करने का आह्वाहन भी किया. उन्होंने कहा मुस्लिम औरतों को बराबर का हक मिले और मुसलमान खर्चीली शादियों, सूदखोरी आदि से दूर रहें. यह सही है कि दुनिया का कोई भी धर्म किसी भी दूसरे को भला बुरा नहीं कहता और सभी को साथ लेकर चलने की बात करता है.
         आज जिस तरह से केंद्र सरकार ने मदरसों की हालत सुधारने के लिए जो केंद्रीय कानून बनाने का प्रस्ताव किया है उसका विरोध करने का कोई मतलब नहीं बनता. एक तरफ मौलाना साहब ने तरक्की की बात की वहीं दूसरी तरफ़ मदरसों की हालत सुधारने का विरोध भी किया. आज के समय में जिस तरह से मदरसों की हालत ख़राब होती चली जा रही है और वहां पढ़ाने वाले शिक्षकों को जिस तरह कम पैसों में अपना खर्च चलाना पड़ता है उस सारी स्थिति को बदलने में इस तरह का कोई बोर्ड काफी मदद कर सकता है. आखिर सरकारी स्तर पर संचालित किये जाने वाले वक्फ़ बोर्ड भी तो अपना काम कर ही रहे हैं हाँ इतना अवश्य है कि कुछ लोग इसके माध्यम से अपने फायदे की बात कर रहे हैं. अगर सरकारी मदद मिलने से मदरसों में शैक्षणिक महाल में सुधार होता है तो उससे किसका भला होगा ? आख़िर सरकार की इस मंशा पर क्यों पानी फेरने का काम किया जा रहा है ? आज की तारीख़ में मदरसों के पास इतने संसाधन नहीं हैं कि वे स्वयं अपना खर्च चलते हुए अच्छी व्यवस्था कर सकें. इस स्थिति में अगर सरकार से कुछ पैसा इन मदरसों को मिल जाता है जिससे यहाँ पर भवन और अन्य बुनियादी सुविधाओं को बेहतर किया जा सके तो यह किस तरह से समाज के लिए हितकर नहीं होगा ? हाँ एक बात में सरकार का हस्तक्षेप नहीं बर्दाश्त किया जा सकता कि ये मदरसे वहां पर दीनी तालीम के आलावा कुछ और नहीं पढ़ाना चाहें तो कोई ज़बरदस्ती न की जाये. इतना तो किया ही जा सकता है कि विकास कर रहे मुस्लिम देशों में मदरसों कि व्यवस्था को देख समझ कर भारत में भी उनका उदाहरण देकर अच्छी शिक्षा देने का प्रबंध किया जा सकता है.
       इस तरह के काम केवल मिलकर ही किये जा सकते हैं भारत में हिन्दुओं की बहुतायत होने के कारण सरकार में भी यही अधिक हैं बस यही बात मुस्लिम समाज को कहीं से शंकालु बना देती है कि कहीं किसी दिन इन मदरसों पर कोई अन्य बंधन न लगा दिया जाये ? अगर सरकार पूरे मुस्लिम समाज के भले की बात कर रही है तो इसके पक्ष में मुस्लिम समाज को ही मंथन करने की आवश्यकता अधिक है.  

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1 टिप्पणी:

  1. इस तरह के काम केवल मिलकर ही किये जा सकते हैं भारत में हिन्दुओं की बहुतायत होने के कारण सरकार में भी यही अधिक हैं बस यही बात मुस्लिम समाज को कहीं से शंकालु बना देती है कि कहीं किसी दिन इन मदरसों पर कोई अन्य बंधन न लगा दिया जाये ? अगर सरकार पूरे मुस्लिम समाज के भले की बात कर रही है तो इसके पक्ष में मुस्लिम समाज को ही मंथन करने की आवश्यकता अधिक है.

    मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...


    umda post.........

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