शुक्रवार, 19 मार्च 2010
कल गौरैया दिवस है...
क्या हमें अपना बचपन याद है ? क्या वो भूरी छोटी सी चिड़िया भी याद है जो अक्सर ही हमारे आँगन में फुदकती रहती थी ? याद करके देखिये कि कितने दिनों से आपने उस छोटी सी गौरैया को नहीं देखा है ? कुछ याद आया ? वो आँगन में उसे पकड़ने के लिए तरह तरह के उपाय करना फिर उसका फुर्र से उड़ जाना ? अब तो कुछ याद आया ही होगा ? चलिए कोई बात नहीं हम आपको याद दिला देते हैं कि वह गौरैया भी अब विलुप्त होने वाले जीवों में आ गयी है. कारण बहुत सारे रहे हैं जिनसे इस बेहद शर्मीली और घरेलू चिड़िया के जीवन पर ही संकट आ गया है. विश्व में इस तरह के विलुप्त होते जीवों को बचाने के लिए जुटी संस्थाएं २० मार्च को विश्व गौरैया दिवस के रूप में मनाने जा रही हैं. हो सकता है कि हमारे आस पास अभी भी कहीं पर ये चिड़िया बची हो ?
कुछ प्रयास करके हम इसको बचाने में काफी मदद कर सकते हैं. सबसे पहले अपने घरों के आस पास खाने की जूठन को थोड़ी मात्रा में खुली जगह पर रखना चाहिए जिससे इन्हें खाने के लिए बहुत दूर तक न भटकना पड़े. घर में अगर किसी भी तरह के पेड़ लगाने की जगह है तो कुछ झाड़ी दार पौधे भी लगाये जाने चाहिए जिससे ये उनमें अपना घर बना सकें. यदि हमारे पास और कुछ नहीं हैं तो कम से कम अपने घरों में हम लकड़ी के एकाध डिब्बे तो रख ही सकते हैं जिनमे ये अपने घोंसले बना सकें. आज के समय में उनके सामने खाने और रहने की बहुत बड़ी समस्या है यदि इस तरह से इनको कुछ माहौल मिलने लगेगा तो बहुत जल्द ही ये फिर से हमारे आंगन में फुदकती हुई नज़र आएगी .
कहा जा रहा है कि मोबाइल तरंगों से भी इनको बहुत नुकसान हो रहा है तो इस मामले में हम बहुत कुछ तो नहीं कर सकते क्योंकि आज के विकसित होते समाज में यह सब आवश्यक हो चुका है फिर भी दिन में कुछ घंटे तक अगर हम अपने मोबाइल बंद ही कर दें तो शायद इनकी कुछ मदद भी हो जाये. घरों में एक मोबाइल खुला छोड़ रात में अन्य सारे बंद किये जा सकते हैं या फिर बेसिक का इस्तेमाल किया जा सकता है. अब देखना है कि क्या हम इनको अगली पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए तैयार हैं ? क्या हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे भी इनसे खेलें ? तो आइये कल विश्व गौरैया दिवस पर कुछ तो करें ही जिससे ये भविष्य के लिए बची रह सकें. और हम इन्हें केवल इस रूप में ही न देख सकें ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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बहुत महत्त्वपूर्ण जागरूकता अभियान
जवाब देंहटाएंचलाने के लिए बधाई!
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संपादक : सरस पायस