मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

राष्ट्रीय स्तर के खिलाडी का हाल...

देश में सरकारें खेलों के विकास के लिए चाहे जितनी बड़ी बातें करें पर ज़मीनी स्तर पर सच्चाई कितनी कड़वी हो सकती है यह राजस्थान के भरतपुर जिले के पहलवान टिंकू खान के बारे में जानकर पता चल जाता है. खान ने ९९/२००० में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया था पर अब वे अपनी आजीविका चलाने के लिए नरेगा के पंजीकृत मजदूर हैं. इस देश में जब आई पी एल में पैसों की बारिश हो रही है तभी अन्य खेलों से जुड़े खिलाड़ी इतने मजबूर हो गए हैं कि खेलने के बाद उनके लिए नौकरी तो बहुत दूर की बात है खाने पीने के भी लाले पड़े रहते हैं. आज भी देश में एक अच्छी और प्रभावी खेल नीति की कमी है हम सभी विश्व स्तरीय खेलों में अपने प्रदर्शन का रोना रोते रहते हैं पर इन परिस्थितयों में भी कोई अगर किसी खेल की तरफ जाता है तो वह वास्तव में धन्य है.
            आज भी देश में खेलों के नाम पर राजनीति हो रही है जबकि अच्छी प्रतिभाएं कहीं किसी दूर दराज़ के इलाके में दम तोड़ती चली जाती हैं. देश में नेताओं के पास क्या कुछ नहीं है पर अब तो खेल संघों में भी दलीय राजनीति का बोलबाला हो चुका है. विश्व भर में शायद भारत ही एक मात्र देश होगा जहाँ नेता हर चीज़ को अपने कब्ज़े में रखना चाहते हैं. अब नेता देश के नीति नियंता बन ही चुके हैं तो खेल को उन्हें खिलाड़ियों के लिए ही छोड़ देना चाहिए ? पर कुछ खेल संघों में पैसे की बहुतायत भी शायद उन्हें बैठने नहीं देती है और वे फिर से वहीं पर वापस लौट आते हैं . केवल इनको अपना स्वार्थ दिखाई देता है जिसके पीछे देश के खेलों का दुर्भाग्य शुरू हो जाता है. आज भी समय है कि कुछ ऐसा होना चाहिए जिससे ये व्यस्त नेता किसी भी खेल संघ में अनावश्यक हस्तक्षेप न कर सकें. शरद पवार जैसे लोग अपना मंत्रालय तो ठीक से संभल नहीं पा रहे हैं पर उन्हें क्रिकेट की ज्यादा चिंता हो रही है ? अच्छा हो कि यह सब खिलाड़ियों के हाथ में ही रहे जिससे भविष्य में कोई टिंकू खान नरेगा में मजदूर न बनने पाए.    
 


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