इसे भारतीय कूटनीति की विफलता कहें या अमेरिका की मजबूरी कि परमाणु हथियार सम्मलेन के दो दिन पहले हिलेरी क्लिंटन ने इस मुद्दे पर भारत-पाक को एक ही तराजू पर तौल दिया है. अब ऐसा भी नहीं है कि अमेरिका यह नहीं जानता कि इस मसले पर भारत पाक से मीलों आगे है और तभी भारत के साथ १२३ समझौता हो गया पर पाक के साथ अभी भी इस मुद्दे पर बात भी शुरू नहीं हुई है. पता नहीं किस रणनीति के तहत हिलेरी ने इस तरह का फालतू का बयान जारी किया है पर इससे भारत को यह समझने का अवसर तो ज़रूर ही मिल गया है कि पाक के मुकाबले अमेरिका हमें कम भाव देता है. वैसे भी हम एक बढ़ती हुई शक्ति हैं और हमें इस तरह के भेद भाव की बात पूरी ताकत से उठानी चाहिए क्योंकि जब हमारे देश कि प्रतिक्रिया बहुत ठंडी होती है तो उससे अमेरिका को यह लगता है कि कूट नीति के लिए जब भी चाहो भारत का इस्तेमाल कर लो क्योंकि यह आसानी से बुरा मानता ही नहीं है ? पर अमेरिका को यह नहीं भूलना चाहिए कि अब भारत संपेरों के देश नहीं है वह किसी भी उन्नत तकनीक में महारत प्राप्त देश है और अमेरिका में चल रहे अधिकांश वैज्ञानिक प्रयोगों में भारतीयों का बहुत बड़ा योगदान है.
भारत का परमाणु हथियारों के मुद्दे पर हमेशा से जो रुख़ रहा है वह पूरी दुनिया को पता है तभी तो सी टी बी टी पर हस्ताक्षर न करने के बाद भी भारत की बात को पूरी दुनिया सुनती है जबकि पाक ने अपने परमाणु कार्यक्रम को चोरी छिपे चलाया और कई देशों को पैसे लेकर तकनीक को बेचने का काम भी किया. इस मसले पर भारत को अपनी बात पाक का नाम लिए बगैर ही कहनी चाहिए क्योंकि अगर हम उसके साथ अपने को जोड़ते हैं तो यह बिना किसी कारण के ही हमारे स्तर को पाक के समकक्ष पहुंचा देता है. हमें अपना काम अपने हिसाब से करना है वह समय दूर नहीं जब अमेरिका को भी इस बात का एहसास हो जायेगा कि पाक को सहारा देकर उसने किस भस्मासुर को पाला है ? फिलहाल सम्मेलन में मनमोहन सिंह अपनी बात को विनम्रता के साथ पर कठोर सन्देश के रूप में देने से परहेज़ नहीं करेंगें यह सभी को पता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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