मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

चिदंबरम की पेशकश

जैसी कि सम्भावना थी कि इतने बड़े नक्सली हमले के बाद गृह मंत्री पी चिदंबरम अपने पद से इस्तीफ़ा दे सकते हैं वह कल सच साबित हुई, यह सच है कि इस तरह के मामलों में नैतिक आधार पर इस्तीफ़ा देना लोकतान्त्रिक परम्पराओं का ही हिस्सा हैं पर चिदंबरम ने जिस तरह से मनमोहन सिंह पर दबाव कम करने के लिए यह किया उससे भाजपा और वाम पंथियों को भी उनके समर्थन में बयान जारी करने पड़े. नि:संदेह चिदम्बरम की पारी को बहुत अच्छा कहा जा सकता है उनके कार्यकाल में बहुत सारे लंबित मामलों पर त्वरित कार्यवाई कर समस्याओं का समाधान निकलने का प्रयास किया गया है. उन्होंने बात चीत के द्वार खुले रखने की बात सदैव ही कही पर नक्सलियों ने उनके बयानों को कमजोरी माना. सरकार के पास जिस तरह का तंत्र है उससे नक्सलियों के ढांचे को पूरी तरह से ख़त्म किया जा सकता है पर इस तरह के अभियानों में आम जनता का भी बहुत नुकसान हो जाता है और इन चोट खाए लोगों को विद्रोही सरकार के आतंक की कहानियां सुनाकर और भड़काने लगते हैं. जैसा कि बराबर कहा जा रहा है कि नक्सली भी देश के ही हैं कुछ कारणों से वे भटक गए हैं उनकी समस्याओं पर ध्यान देकर उन्हें मुख्या धारा में लाने के प्रयास भी किये जाने चाहिए. जिस तरह से उन्होंने छत्तीसगढ़ में बर्बरता की हद कर दी उससे यही लगता है  कि वे अब हताशा में हैं और कुंठित होने पर इस तरह के हमले और भी किये जा सकते हैं. आज समय है कि देश में सभी को साथ लिया जाये खास तौर से नेताओं को क्योंकि कई जगहों पर इन नेताओं पर ही आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने नक्सलियों से सांठ-गाँठ कर रखी है ?
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में प्रशासन की मौजूदगी दिखाई पड़नी चाहिए. बहुत बार तो केवल गरीबी से लड़ने और भूख से परेशान होकर ही बहुत सारे लोग बंदूकें उठा लेते हैं. प्रशासनिक स्तर पर सुधार के साथ ही मानवीय आधार पर आम जनता के साथ व्यवहार किया जाना भी बहुत आवश्यक है क्योंकि तब ये नक्सली आसानी से मनमानी नहीं कर पायेंगें. इस बात का उदाहरण हम कश्मीर में देख चुके हैं कि मानवीय आधार पर चलाये जा रहे अभियानों का अच्छा असर दिखाई दिया है. आज समय है कि चिदंबरम जैसे लोगों को पूरी आज़ादी से काम करने दिया जाये तभी जाकर वे अपनी नीतियों पर चलकर अलगाव वाद के बीजों को पनपने से रोक पायेंगें.

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