मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

सुरक्षा कितनी ?

उत्तर प्रदेश में केंद्र सरकार की आरक्षण विरोधी रैली के दौरान गोंडा में हजारों की भीड़ के सामने अज्ञात हमलावरों ने जिला पंचायत सदस्य और बसपा नेता की गोली मारकर हत्या कर दी और इतनी भीड़ के बीच से हमलावर आसानी से निकल कर भाग गए. इस तरह की खबर पर कभी किसी का ध्यान नहीं जाता लोग इसे मात्र व्यक्तिगत रंजिश कहकर टालने का प्रयास करेंगें, पर प्रदेश में बसपा जिस तरह से भीड़ जुटाने में माहिर है उसे देखकर किसी अनहोनी को कहाँ तक टाला जा सकता है ? यह संदेह होने लगता है कि क्या प्रदेश में कानून व्यवस्था कहीं पर है भी या नहीं ? सत्ताधारी दल की रैली में भी पुलिस इतनी लापरवाह होती है कि सरेआम कोई हत्या करके निकल जाये ? यहाँ पर मसला किसी एक व्यक्ति के मारे जाने का नहीं वरन लोगों की सुरक्षा का है. क्या बसपा से यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि इस तरह की भेड़ इकठ्ठा करने के बाद उनको भेड़ बकरियों की तरह क्यों छोड़ दिया जाता है ? लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का हक है पर अगर ऐसे में कोई आतंकी हमला कर दें और भारतीय मानस जिस तरह से संकट के समय व्यवहार करता है तो जान माल का नुकसान कितना होगा इसका किसी ने कभी आंकलन किया भी है ?
भीड़ का अपना एक अलग ही तंत्र होता है किसी भी आपदा से निपटने के लिए आम आदमी कितना तैयार है यह हम सभी जानते हैं फिर भी अलग अलग जगह पर इतने लोगों को बिना उचित सुरक्षा के जुटाना कैसे तर्क संगत कहा जा सकता है. बसपा नि:संदेह अनुशासन में रहने वालों का दल है पर जिस तरह से इसके कार्यक्रमों में भीड़ आती है उसे देखते हुए इसे भी अपने स्तर से किसी भी आपातकाल से निपटने की पूरी योजना कार्यकर्ताओं को समझानी चाहिए हो सकता है कि इस तरह की कोई व्यवस्था वहां पर चलती हो पर कल गोंडा की घटना ने यह साबित कर दिया कि अब हर पार्टी और सरकार के लिए इस तरह से सोचना भी बहुत ज़रूरी है. जो आम आदमी अपने नेता के बुलावे पर कहीं जाता है तो यह उस नेता का कर्त्तव्य बनता है कि उन लोगों की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था भी की जाये. आज के समय आतंकी ख़तरे को देखते हुए कहीं भी कुछ भी किया जा सकता है इसको देखते हुए इस तरह के किसी भी आयोजन को करने से पहले सुरक्षा के मानकों को पूरी तरह से पूरा करना चाहिए सरकार को भी आयोजकों को यह बता देना चाहिए कि किस स्तर पर कितनी सुरक्षा की आवश्यकता है ?     

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