इस चित्र को देखकर क्या सोचते हैं आप ? क्या लगता है ? हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं ? किन नियमों के तहत हम सड़क पर चलते हैं ? नहीं... घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है इतने सारे सवाल किसी से भी पूछ लिए जाएँ तो वह घबरा तो जायेगा ही न ? आप सभी भी कहीं न कहीं इस तरह के सीन अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में देखते ही होंगें ? जिस ठेकेदार की लकड़ी है वह भी हमारे जैसा है जिसका ट्रैक्टर है वह भी कोई हम जैसा है और जो इसे चला रहा है वह भी बिलकुल हमारे आप जैसा ही तो हैं न ? ऐसा भी नहीं है कि सड़क सुरक्षा के ज़िम्मेदार लोगों को यह दिखायी नहीं देता ? पर शायद उनकी आँखों पर पैसे का चश्मा लगाकर उन्हें केवल उतना ही देखने की अनुमति दी जाती है जो सही होता है ? एक बार इस तरह से विचार करके देखिये कि इस तरह की ही किसी सड़क से हम हमारा परिवार और हमारे बच्चे रोज़ ही गुज़रते हैं अगर किसी बुरे दिन इसी तरह के किसी वाहन ने कोई दुर्घटना कर दी तो क्या करेंगें हम ? हम तो बच निकलने में ही विश्वास करते हैं कि आज हम बच गए तो कल फिर देखेंगें पर किसी दिन नियति ने हमें अगर बचने का मौका ही नहीं दिया तो ? ज़ाहिर है कि इस तरह के किसी भी तंत्र में हम भी फँस सकते हैं पर जब फँसेंगें तब देखेंगें कि नियति कभी हमें सोचने का अवसर भी नहीं देती है और सब कुछ अचानक ख़त्म सा हो जाता है ?
सड़क दुर्घनाओं में जिस तरह से भारत में लोग मरते हैं उस तरह की मिसाल शायद ही किसी अन्य देश में मिले ? क्यों नहीं हम यह समझना चाहते हैं कि सड़क की सुरक्षा सड़क पर चलने वाले हर व्यक्ति से ही होती है कोई एक व्यक्ति इस नहीं बना सकता है किसी एक के करने से सारा नहीं होने वाला है.. हाँ इतना ज़रूर है कि अगर एक एक करके सभी इसे अपना लें तो जिंदगी में बहुत कुछ सही भी हो सकता है. कोई किसी पर कब तक नज़र रख सकता है ? अच्छा है कि अब भी हम चेत जाएँ और कुछ ठीक से चलने का सलीका सीख लें फिर हमें यह सोचना और कहना नहीं पड़ेगा कि घर पर कोई हमारा इंतज़ार कर रहा है..... धीमे चलिए !
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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