इधर कुछ समय से देखा जा रहा है कि सरकार में रहकर नीतियों से विरोध करने का एक चलन सा होता जा रहा है. देश को चलाना एक ज़िम्मेदारी होती है पर जब इस ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रियों को इतनी छूट दे रखी हो तो उन्हें भी अपने काम काज के प्रति अधिक जागरूक होना चाहिए. केंद्र सरकार के कई मंत्री खुले आम अपने मतभेदों को उजागर करते फिरते हैं जिससे कई बार देश में गलत सन्देश चला जाता है और किसी बड़े सहयोगी दल के द्वारा इस तरह का व्यवहार करने पर सरकार की स्थिरता भी संदेह के घेरे में आ जाती है. यह सही है कि हर एक दल अपने हितों को ध्यान में रखते हुए नीतियां तय करता है जो कि अन्य दलों को रस नहीं आती हैं और इससे अनजाने में देश की साख़ को धक्का पहुँचता है. जो भी दल सरकार में शामिल हैं वे एक निश्चित साझा कार्यक्रम के तहत साथ में हैं और मंत्रिमंडल में रहकर नीतियों की आलोचना करना बहुत ग़लत है क्योंकि जब इन मत्रियों के पास बैठक में अपनी बात कहने का अवसर होता है तो फिर से सार्वजानिक मंचों से विवादित बातों को क्यों उठाते रहते हैं ?
देश की राजनीति और राजनीतिज्ञों में अभी इतनी समझ नहीं आई है कि सरकार में रहकर भी सरकार के ख़िलाफ़ बोला जा सकता है और तो और हमारा मीडिया और हमारी जनता भी इसे गंभीर मतभेद मानने लगती है और मीडिया द्वारा कई बार ऐसा कर दिया जाता है कि फिर किसी अच्छे व्यक्ति को इस्तीफ़ा देना ही पड़ता है. जब इतने बड़े देश से आये हुए नेता मंत्री बनते हैं तो उनके क्षेत्र की जनता की भी उनसे अपेक्षाएं होती हैं जिसे पूरा करने का दबाव नेता लोगों पर ही आता है. कई बार अपने अनजान होने के कारण और कभी जानबूझकर नेता ऐसी हरकतें कर देते हैं कि पूरी सरकार के लिए असहज स्थिति उत्पन्न हो जाती है. अपनी बातें कहने का सभी को अवसर दिया गया है पर नीतिगत मुद्दों पर मंत्रिमंडल के बहार कुछ भी बोलना अभी इस देश में स्वीकार नहीं किया जाता है. इसलिए अच्छा ही होगा कि नेता अपने मुंह खोलते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि कहीं उनके कारण पूरी सरकार पर तो आंच नहीं आ रही है ? कई बार व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं भी नेताओं को इस तरह की बातें कहने के लिए उकसा देती हैं जिसका खामियाज़ा उन्हें ही भुगतना होता है. अच्छा हो कि सरकार अपने अन्दर ही इस तरह का सुधार लागू करे जिससे इस तरह के मदभेदों को उठाने के लिए मंत्रियों के पास भी एक मंच हो और सभी मिलकर इन मसलों पर विचार कर सामूहिक निर्णय ले सकें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
एक अपील:
जवाब देंहटाएंविवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
कई बार व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं भी नेताओं को इस तरह की बातें कहने के लिए उकसा देती हैं जिसका खामियाज़ा उन्हें ही भुगतना होता है.
जवाब देंहटाएंSehmat hun.
देश की राजनीति और राजनीतिज्ञों में अभी इतनी समझ नहीं आई है कि सरकार में रहकर भी सरकार के ख़िलाफ़ बोला जा सकता है और तो और हमारा मीडिया और हमारी जनता भी इसे गंभीर मतभेद मानने लगती है और मीडिया द्वारा कई बार ऐसा कर दिया जाता है कि फिर किसी अच्छे व्यक्ति को इस्तीफ़ा देना ही पड़ता है.
जवाब देंहटाएंBILKUL SATYA HAI....