आखिर कार बसपा ने भी अपराधी छवि वाले विधायकों और सांसदों के खिलाफ घुटने टेक ही दिए. जिस तरह से माया ने अपने सभी वर्तमान विधायकों को फिर से टिकट देने की घोषणा की उससे तो यही लगता है कि कभी पार्टी में निरंकुश राज करने वाली नेता को भी इन बाहुबलियों की ताकत का एहसास हो गया है. माया का यह कहना कि जिन अपराधी तत्वों को विरोधियों ने साजिश के तहत बसपा में शामिल करवाया था उनको चिन्हित कर लिया गया है और उनके खिलाफ कार्यवाही भी की जा रही है. सारी दुनिया जानती है कि केवल अपने बहुमत के जुगाड़ में उस समय माया ने इस बात पर कोई विचार ही नहीं किया था कि कौन पार्टी में आ रहा है और कैसे आ रहा है. एक ऐसी पार्टी की मुखिया जिनकी मर्ज़ी के खिलाफ लोग सांस भी नहीं ले पाते हों यह कहें कि विरोधियों ने कुछ लोगों को पार्टी में शामिल करा दिया था ? क्या देश के सबसे बड़े प्रदेश की मुखिया और दसियों देशों से ज्यादा आबादी रखने वाले प्रदेश की कमान ऐसे नेत्रित्व के पास है जिसको अपना भला बुरा भी नहीं समझ आता है ? क्या बसपा में सदस्यता अब विरोधियों के कहने पर दी जाने लगी है ? क्या कारण है कि आज भी शेखर तिवारी, आनद सेन और गुड्डू पंडित जैसे लोग अभी भी बसपा के विधायक हैं ? जब कि ये सभी अपने अपराधों के कारण जेल जा चुके हैं ? माया क्या समझती हैं कि वे जो भी कहती रहेंगीं जनता सब सच मान लेगी ?
राजनीति की मजबूरी ने माया को इतना लचर कर दिया कि उनके मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड बहुत ख़राब है और वे किसी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सकती हैं क्योंकि इससे उनके सर्व जन हिताय की नीति को धक्का लगने का खतरा है. इस राजनीति ने देश की एक कुशल प्रशासक को इतना मजबूर कर दिया है कि अब उनकी पुरानी कड़क छवि कहीं गायब हो चुकी है. आज सरकार केवल अपने बचे हुए दो साल पूरे करने में ही लगी हुई है अगर सारा कुछ इस तरह से ही चलता रहा तो यह माया को भी पता है कि अगली विधान सभा में विपक्ष की बेंचों पर उन्हें बैठना ही होगा. कड़े अनुशासन में रहने वाली पार्टी सत्ता मिलने पर कम अनुशासन वाली पार्टियों का बहुत बुरा संस्करण साबित हुई है. यह सच है कि देश को माया जैसे नेताओं की बहुत ज़रुरत है पर उनके जैसी शख्सियत ने भी घुटने टेकना शुरू कर दिया है यह देश के लिए अच्छा नहीं है और दलित समाज के लिए तो बिलकुल भी नहीं. अगर उन्हें किसी बात का डर नहीं है तो अच्छे तेज़ तर्रार अफसर आख़िर कहाँ पोस्ट किये गए हैं उन्हें पूछना ही चाहिए ? जब तैनाती से बहुत कुछ सुधर सकता है तो अच्छे अधिकारियों को सही स्थान पर उपयोग किया जाना ही चाहिए. अब भी समय है कि कुछ सही कदम उठाकर प्रदेश की जनता के घावों पर मलहम लगाने का काम तो किया ही जा सकता है. पर फिलहाल तो सरकार को विधान परिषद् चुनावों की चिंता सता रही है कि कहीं कड़ी कार्यवाही उसके विधायकों को क्रास वोटिंग करने के लिए न उकसा दे ? बस इस तरह की चिंताएं सरकार को ठीक तरह से चलने ही नहीं दे रही हैं.
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राजनीति की मजबूरी - सत्ता की भूख: जो न करवाये सो कम!
जवाब देंहटाएंsabhi rajneta yahi khel khel rahe hain.
जवाब देंहटाएंराजनीति की मजबूरी ने माया को इतना लचर कर दिया कि उनके मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड बहुत ख़राब है और वे किसी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सकती हैं क्योंकि इससे उनके सर्व जन हिताय की नीति को धक्का लगने का खतरा है
जवाब देंहटाएंraajneeti hai na koi dharm na imaan...bas raaj karne ki neeti...
जवाब देंहटाएंमाया महा ठगनी सब जान गए
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