मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 5 जुलाई 2010

सीआरपीएफ को तो बख्शो....

दुनिया के सबसे बड़े अर्ध सैनिक बल सीआरपीएफ के सामने अचानक ही ऐसी चुनौतियाँ सामने आ गयी हैं जिनके बारे में कभी उसके आला अधिकारियों ने सोचा भी नहीं होगा. अभी तक कश्मीर में उसके हर कदम को ग़लत बताया जाता था केवल अपने वोट पक्के करने के चक्कर में राजनेता कभी भी कुछ भी इस बल के ख़िलाफ़ बोल दिया करते हैं. यह सही है कि इस बल की ज़िम्मेदारी ही कुछ ऐसी है कि न चाहते हुए भी यह ऐसे विवादों में फँस जाता है. अगर ज़मीनी हक़ीकत की बात की जाये तो पूरे देश में जहाँ भी कोई समस्या होती है उस से निपटने के लिए यह बल राज्य सरकारों के पुलिस बल की मदद के लिए भेजा जाता है. कश्मीर के अलगाव वाद की बात हो या कई राज्यों में चलने वाले नक्सली आन्दोलन की हर जगह यह बल अपने सीमित संसाधनों से ही मदद कर रहा है.
          कश्मीर में वोटों के खेल ने ही पिछले १० दिनों में इस बल को बहुत ही ख़राब साबित करने का प्रयास किया पर जिस तरह से यह बल मुस्तैदी से अपना काम करता रहता है उसके चलते ही फिर से कश्मीर में हालात सामान्य होते जा रहे हैं. यह सही है कि कई बार इस तरह की कार्यवाही में आम निर्दोष नागरिक भी मारे जाते हैं पर किसी एक घटना के लिए पूरे बल को बदनाम करने की साजिश कहाँ तक उचित कही जा सकती है ? अब दूसरी तरफ यह भी दिखाई दे रह है कि बिना इस बल के कश्मीर की पुलिस कुछ भी करने की स्थिति में नहीं है.
      नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में यह कहानी थोड़ी उलटी हो जाती है क्योंकि वहां पर राज्य की पुलिस और इस बल में तालमेल न होने के कारण ही पिछले कुछ दिनों में इस बल ने १०० से अधिक जवान और अफसरों को खोया है. राज्य सरकारों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे इस बल का उपयोग बेहतर तालमेल के साथ अपने बल के सहयोगी के तौर पर करें पर आम तौर पर राज्य पुलिस बल इन्हें अपना प्रतिद्वंदी मान लेते हैं जिसके बाद एक दूसरे को नीचा दिखाने का काम शुरू हो जाता है. अगर किसी राज्य को इस बल पर भरोसा नहीं है तो उसे सीधे ही केंद्र सरकार को मना करके इन बलों को अपने यहाँ नहीं बुलाना चाहिए पर जिस तरह के हालात हैं उसमें कोई भी राज्य पुलिस बल इतना सक्षम नहीं है कि वह अपने दम पर सारा कुछ संभाला सके ? बेहतर होगा कि इस तरह से जहाँ  भी बड़ी संख्या में इस बल को तैनात किया जाये वहां पर संयुक्त कमान का गठन भी किया जाये और इस तरह के किसी भी आपरेशन को चलाने के लिए कुछ वरिष्ठ अधिकारीयों की अलग से तैनाती की जाये जो इस तरह के मामलों के सही ढंग से जानकार हों और वे स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों से भी पूरी तरह से वाकिफ़ हों.
    अब समय आ गया है कि सभी स्थानों पर राज्य पुलिस और केंद्रीय बल मिलकर काम करें जिससे इन बलों को कम नुकसान उठाना पड़े साथ ही जिस काम के लिए इनकी तैनाती की गयी है उसमें भी इनको सफलता मिल सके. आशा है कि अब सरकारें अपने दलीय हितों को छोड़कर राष्ट्र हित में आगे से इस तरह की घटनाओं में बेहतर तालमेल का प्रदर्शन करती दिखाई देंगी. 

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