मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 17 जुलाई 2010

पाक वार्ता के लायक ?

जिस तरह से इस्लामाबाद में विदेश मंत्री स्तर की वार्ता में पाक अपने रुख पर अड़ा रहा उससे तो यही लगता है कि  उसे किसी भी तरह की ठोस वार्ता की ज़रुरत ही नहीं है. पाक के विदेश मंत्री का यह कहना की कृष्णा दिल्ली के इशारे पर बात कर रहे थे यह भी दिखाता है कि राजनयिक तौर पर पाक कितना कमज़ोर है ? अगर कृष्णा दिल्ली के नहीं तो क्या पाकिस्तान की तरह बीजिंग के इशारे पर बात करेंगें ? भारत में मुंबई हमला कितना बड़ा मुद्दा है यह अभी तक पाक की समझ में ही नहीं आया है तभी पाक की तरफ से इस तरह की बयानबाज़ी की जाती है.
           पाक को अभी तक यह भी समझ नहीं आया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है और जिस तरह से कुरैशी ने कहा कि भारत कश्मीर में सेना तैनात कर रहा है ऐसे में पाक चुप नहीं रहेगा तो भारत से किस तरह की वार्ता करने की मंशा पाक की है ? सभी जानते हैं कि शांत हो चुके कश्मीर में पाक लश्कर और हुर्रियत के इशारे पर नौजवानों को भड़काने की साजिश की गयी जिससे जून से अभी तक कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में उग्र और हिंसक प्रदर्शन के दौरान लोग पुलिस की गोली का शिकार होते रहे ? कश्मीर के बारे में पाक ने हमेशा से आँखें बंद ही रखी हैं और अफ़सोस की बात यह है कि इस्लामी आबादी को ढाल बनाकर अपना उल्लू सीधा करने में पाक ने हमेशा कश्मीरियों का इस्तेमाल ही किया है. भारत सरकार ने बराबर कहा है कि घाटी में सेना की तैनाती नहीं की जाएगी और राज्य की पुलिस के साथ अर्ध सैनिक बल जो वहां पर पहले से ही मौजूद हैं अपना काम और मुस्तैदी से करेंगें. वास्तविकता यह है कि कश्मीर में कहीं भी स्थानीय प्रशासन की मदद करने के लिए सेना कि तैनाती नहीं की गयी है.
       कुरैशी ने जिस तरह से सामान्य शिष्टाचार की भी परवाह नहीं की उससे तो यही लगता है कि पाक ने केवल दुनिया को दिखाने के लिए वार्ता का नाटक किया. भारत के हाफिज़ सईद के बारे में दी गयी जानकारी की तुलना भारत के गृह सचिव से करके पाक ने यह तो बता ही दिया कि आगे से उससे किसी भी तरह की वार्ता न ही की जाये तो ही बेहतर है ? कुरैशी ने जिस तरह से पूरे प्रकरण को मीडिया के सामने रखा वह राजनयिक शिष्टाचार में बद- तमीज़ी में गिना जाता है और जब तक पाक के पास ऐसे सोच वाले लोग सत्ता में हैं तब तक किसी भी तरह की ठोस बात हो ही नहीं सकती है. लगता है पाक को अंतर्राष्ट्रीय राजनयिक शिष्टाचार भी अब याद नहीं रह गया है क्योंकि उसके राष्ट्रपति भी अभी हाल ही में बीजिंग के दौरे के समय इस तरह की हरकतें कर चुके हैं जब वे शीर्ष वार्ता के समय अपनी बेटियों को लेकर पहुँच गए थे. सामान्य तौर पर जब भी कोई वार्ता होती है तो उस समय परिवार या निकट सम्बन्धियों को इससे दूर ही रखा जाता है. यह काम तो पाक बहुत दिनों से करता चला आ रहा है क्योंकि शिमला समझौते के समय भुट्टो भी बेनजीर को साथ में शिमला घुमाने के लिए लेकर आये थे.
      बेहतर होगा कि इस बारे में अब भारत सरकार अपने रुख को स्पष्ट कर दे और आगे किसी भी वार्ता के लिए केवल आधिकारिक स्तर पर ही काम चलाये. जब तक पाक को यह समझ न आ जाये कि जब अंतर्राष्ट्रीय वार्ता होती है तो किस तरह के शिष्टाचार की अपेक्षा दोनों पक्षों से की जाती है ? वैसे भी पाक को कुछ भी समझ नहीं आने वाला है फिर वार्ता के ढोल को पीटने से क्या फायदा है ? अब समय है पाक को उसके हालात पर छोड़ दिया जाये और जब वह पूरे मन से वार्ता के लिए तैयार हो तभी इस मामले में आगे बढ़ा जाये.    


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1 टिप्पणी:

  1. पाकिस्तान कुत्ते की टेडी दुम है, वह कभी नहीं सुधरेगा, नेताओ को भारत में एक वर्ग को खुश करने के लिए उसे गले लगाना है तो लगाये वैसे भी अब तो देश में रोम का शासन है, देश की किसे परवाह है.

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