मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

न्याय में तकनीकि का प्रयोग

सर्वोच्च न्यायालय ने बहुत बड़ी संख्या में विचाराधीन मुक़दमों की सुनवाई के बारे में विचार करते हुए कहा है कि वकीलों को सरकारी काम काज के दौरान दस्तावेजों आदि को भेजने के लिए ई-मेल का प्रयोग करना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति कपाडिया की बेंच ने सरकारी काम काज में ढिलाई पर विचार करते समय यह कहा. उनका यह भी कहना था कि आधे से अधिक मामले सिर्फ इसलिए ही लंबित हैं क्योंकि उनसे जुड़े दस्तावेज़ ही समय से कोर्ट नहीं पहुँच पाते हैं. कोर्ट का यह भी कहना था कि आर्थिक मामलों में जल्दी से जल्दी ही इस बात पर विचार किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि इन मामलों में विलम्ब से बहुत सारे मसलों पर बुरा असर पड़ता है. यह भी अच्छा रहा कि सरकार की तरफ से महाधिवक्ता वाहनवती ने यह कहा कि उन्हें इस फैसले से बहुत ख़ुशी हुई है और सारे सरकारी विभागों के प्रमुखों की ई मेल जल्द ही उपलब्ध करा दी जाएगी.
           अब सवाल यह उठता है कि जब सरकार के पास प्रौद्योगिकी के नाम पर एक पूरा विभाग मौजूद है तो भी इस तरह के फैसले अपने आप क्यों नहीं ले लिए जाते हैं ? हर काम के लिए सर्वोच्च न्यायालय के किसी आदेश की आवश्यकता क्या साबित करती है ? सरकार आख़िर होती किसलिए हैं ? अगर विभाग का मंत्री ही यह नहीं देख सकता कि देश की आवश्यकताओं के अनुसार किस स्तर पर किस सुधार की आवश्यकता है तो फिर सरकारी विभाग और उसके मंत्रियों का काम ही क्या रह जाता है ? फिर भी अच्छा ही हुआ कि सरकार की तरफ से कोर्ट में इस बात पर खुद ही जल्द से जल्द पूरा काम करने की इच्छा जताई गयी. किसी भी स्थिति में जो फैसला देश के हित में हो उसे करने में बिलकुल भी विलम्ब नहीं करना चाहिए.
          वैसे इस फैसले से हो सकता है कि सर्वोच्च न्यायालय में कुछ सुधार आ जाये और प्राथमिकता के आधार पर कुछ मामलों का निपटारा भी होने लगे पर केवल इतने से ही सब कुछ सुधरने वाला तो नहीं है ? देश में संचार के लिए समर्पित भारत संचार निगम के किसी भी अधिकारी को ई मेल करके देख लीजिये शायद ही कभी वहां से समय से जवाब आ पाए ? हो सकता है कि ये अधिकारी कभी अपनी मेल चेक ही नहीं करते हों ? वहीं दूसरी तरफ लगभग ३ वर्ष पूर्व एक अन्य मामले में सरकारी तेल कम्पनी की गैस सेवा से शिकायत होने पर वहां से ३ दिनों के अन्दर मामले का निपटारा कर दिया गया था. अब सवाल यह उठता है कि इस तरह के मामलों में आख़िर किस तरह से काम किया जाये जिससे देश में सरकारी काम काज में कुछ तेज़ी लायी जा सके ? केवल कोर्ट ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र में इस तरह की व्यवस्था की जानी चाहिए और तहसील/ जनपद के अधिकारीयों के लिए यह आवश्यक कर दिया जाना चाहिए कि वे किसी भी तरह के सुझाव और शिकायत को अपने विभाग के सूचना विभाग तक अवश्य प्रेषित करेंगें. इससे भ्रष्टाचार को रोकने में भी बहुत बड़ी मदद मिल जाएगी क्योंकि जब कोई सही शिकायत काफी लोगों के सामने आ जाएगी तो उस पर एक तरफ़ा फैसला लेने पर फंसने की सम्भावना भी बढ़ जाएगी. देश में भ्रष्टाचार की जो समानांतर अर्थ व्यवस्था चल रही है उस पर भी इस तरह के प्रयास से रोक लगाने में बहुत बड़ी मदद मिल जाएगी.   

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1 टिप्पणी:

  1. न्याय विभाग को दक्ष (एफिसिएन्ट) बनाने के लिये ई-मेल की तुलना में बहुत अधिक सूचना-तकनीकी की जरूरत है।

    मेरे मन में आता है कि फैसलों को और अधिक पारदर्शी एवं वस्तुनिष्ट (आब्जेक्टिव) बनाने के लिये एक वृहद सारणी (टेबल) बनायी जानी चाहिये जिसमें मुकदमों का सार परिलक्षित हो। इस सारणी की सहायता से एक कम्प्यूटर प्रोग्राम न्यायधीश को एक बटन दबाते ही संकेत देगा कि किसका पलड़ा भारी है। इसके लिये उक्त सारणी के सभी बनिदुओं का वेटेज पहले से तय किया जाना चाहिये तभी कम्प्यूटर अपना निर्णय दे पायेगा।

    इस प्रणाली से लाभ यह होगा कि निर्णय का बहुत बड़ा भाग वस्तुनिष्ट हो जायेगा और मामूली सा भाग न्यायधीश के विवेक पर रहेगा। इससे सभी निर्णयों में एकरूपता भी आयेगी।

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