कितना देती है ? वाह ! क्या सवाल है जो हर जगह पर बहुत आसानी से पूछा जा सकता है ? सबसे पहले यह सवाल सरकार के बारे में बिलकुल सटीक बैठता है कि जिसे हम नागरिक धूप और सर्दी में लाईन में खड़े होकर अपना कीमती समय लगाकर चुनते हैं वह आख़िर हमें कितना देती है ? हो सकता है कि सरकार बहुत सारे काम देश के वंचितों और ज़रुरत मंद लोगों के लिए कुछ कर देती हो पर आवश्यकता पड़ने पर आम आदमी को वह कितना देती है ? आख़िर सरकार किस लिए चुनी जाती हैं ? शायद इनको इस लिए ही चुनते हैं कि ये देश के बारे में आवश्यक कदम उठाकर देश को प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ाने के काम में अच्छे से लग जायेंगीं ? पर यहीं पर हम सब यह भूल जाते हैं कि ये सरकारें केवल दिखावा हैं और आख़िर में हम यही पूछते हैं कि ५ सालों में ये कितना देती हैं ?
दूसरी तरफ हमारी विधायिका जिसके बारे में जो कुछ भी कहा जाये कम ही है ? क्या हम विधान सभा और लोकसभा के सदस्यों को गुंडई करने के लिए चुनते हैं ? बिहार विधान सभा में जो गमले बजी हुई उसके बाद हम यह तो पूछ ही सकते हैं कि आखिर विधान सभा कितना देती है ? उत्तर प्रदेश के बारे में क्या कहा जाये वह किसी भी मामले में बिहार से पीछे कैसे रह सकता है ? आज कल हमारे पास देश के इतिहास में पहली ऐसी विधान सभा है जो ३ सालों में खुद को उपाध्यक्ष नहीं दे पाई तो आम जनता कैसे पूछे कि कितना देती है ? हमारी संसद के बारे में क्या कहा जाये उसे सजाने और संवारने के लिए पता नहीं कितने प्रयास किये जाते हैं और जब वहां पर बैठकर काम करने के समय आता है तो हम सभी पूछने को मजबूर हो जाते हैं कि यह आख़िर कितना देती है ? मेरे विचार से संसद का सत्र ही नहीं बुलाना चाहिए इसके स्थान पर हर जिले के जिलाधिकारी के यहाँ वीडिओ और एन आई सी के सहयोग से इन सांसदों को संसद की बैठक में भाग लेना चाहिए क्योंकि जब दिल्ली ये लोग केवल घूमने ही जाते हैं तो बेकार में इनसे विधायी कार्य करवाया जाता है ? साल में ३/४ बार इनको दिल्ली सरकारी खर्चे पर अपने चंगू- मंगू के साथ घूमने का अवसर प्रदान कर दिया जाना चाहिए ? फिर हमें यह पूछने की ज़रुरत भी नहीं रहेगी कि हमारी संसद कितना देती है ?
अब बात प्रशासनिक मशीनरी की जो देश में बहुत बड़े बड़े फैसले लेने के लिए ही मौजूद है पर वह कितने फैसले लेती है यह हम सभी जानते हैं ? कभी भी सही समय पर इस पूरी मशीनरी का कोई भी व्यक्ति जनता के आँसू पोछने नहीं जा पाता है ? हिमालय कि तलहटी की जनता पता नहीं कितनी बाढ़ हर साल झेलती रहती है फिर भी कहीं से कोई भी प्रयास नहीं होता इनको इस समस्या से निजात दिलाने के लिए कोई ठोस काम किया जाये ? फिर भी हम अपने पैसे खर्च करने के बाद यह नहीं पूछ सकते कि यह कितना देती है ? देश की सार्वजानिक वितरण प्रणाली आखिर हम सभी को राशन कितना देती है ? सबसे महत्वपूर्ण सवाल जो जनता कभी पूछना ही नहीं चाहती कि इस देश कि राजनैतिक पार्टियाँ आखिर कितना देती हैं ? अगर शायद ये न हों तो देश अपने आप ही इतना देने लायक हो जायेगा कि किसी को यह पूछने की ज़रुरत ही नहीं रहेगी कि कितना देती है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
... बेहद प्रभावशाली
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