मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

अब ब्रिटेन भी बोला..

बंगालुरू में इनफ़ोसिस के एक सम्मलेन केबाद संवाददाताओं से बोलते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री कैमरन ने इस बात पर विशेष बल दिया कि पाकिस्तान को अब दोहरी नीतियां बदल कर किसी भी स्थिति में किसी भी आतंकी संगठन की मदद करने की योजना पर पुनर्विचार करना ही होगा. अभी तक भारत जो बात कहता रहा है उसके बाद विकिलक्स ने अमेरिका की जिस ख़ुफ़िया रिपोर्ट को जारी किया है उसमें हर जगह केवल पाकिस्तान पर ऊँगली उठाई गयी है ? भारत का हमेशा से ही यह कहना रहा है कि पाकिस्तान विश्व भर में आतंक को पोषित करने में सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है, खास तौर से वह इस्लाम के नाम पर पूरे विश्व में अलगाव वादियों की मदद कर रहा है. डेविड हेडली के बयानों के बाद भारत की इस बात की पुष्टि हुई थी जिसमें उसने कहा था कि कसाब और अन्य आतंकियों को पाकिस्तान नेवी ने प्रशिक्षित किया था.
        अफ़गानिस्तान में आतंक के खिलाफ चल रही अमेरिका और नाटो देशों की तथा कथित जंग में पाकिस्तान बहुत बड़ा सहयोगी रहा है और सभी जानते हैं कि इस काम के लिए मिलने वाले धन का दुरूपयोग कर पाक अपने हथियारों के भंडार को बढ़ाने में लगा हुआ है. कहीं से भी पाक यह नहीं कर रहा है जिससे कुछ ऐसे संकेत मिलें कि वह आतंक के खिलाफ़ है ? यह बात सारे विश्व को समझनी होगी कि वह अपने साथ जिसे सहयोगी समझ कर रखे हुए है वही असल में लुटेरों के साथी भी हैं अभी तक अमेरिका की मजबूरी है कि वह पाक से इस तरह की सहायता प्राप्त करता रहे. भारत से उसे खुले आम निर्दोष लोगों पर हमला करने के लिए सहयोग कभी नहीं मिल सकता है यह बात उसे पता है और इसके अलावा दक्षिण एशिया में उसके पास कोई भी विकल्प नहीं बचता है.
       राजनैतिक बयानों के बाद जिस तरह से हलचल होनी थी वह हुई और पाकिस्तान ने इसे सिरे से नकार दिया वहीं ब्रिटेन में भी वरिष्ठ अधिकारियों ने मामले में लीपा पोती करके ठंडा करने का प्रयास किया. आख़िर कब तक ब्रिटेन के नीति नियंता इस तरह से आँखें बंद किये पड़े रहेंगें ? कहीं ऐसा न हो कि उन्हें इसकी भारी कीमत
चुकानी पड़े. अब समय आ गया है कि सारे विश्व को भारत की बात मानकर पाकिस्तान को साफ शब्दों में यह बता देना चाहिए कि अब उसे किसी एक तरफ़ होना ही होगा क्योंकि अब आतंक के खिलाफ लड़ाई में दोनों तरफ़ से खेल नहीं खेला जा सकता है. पता नहीं कब तक अमेरिका और ब्रिटेन में कुछ भारत विरोधी तत्व कब तक सच को समझने का प्रयास करेंगें ? कहीं ऐसा न हो तब तक इन देशों के पास वापसी करने के लिए समय की कमी हो जाये और तब वे इस बात पर अफ़सोस करते ही रह जाएँ ?    

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